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५, ६, ९१.) बंधणाणुयोगद्दारे पत्तेयसरीरदव्ववग्गणा
( ८१ काऊण णेदव्वं जाव बादरतेउक्काइयपज्जत्तजीवा आवलियवग्गादो असंखेज्जगणमेता कमेण वड्डाविय एगबंधणब द्वा जादा ति । अथवा तप्पाओग्गअसंखेज्जजीवा एगबंधणबद्धा घेत्तवा । कुदो ? बादरते उक्काइयपज्जत्तापज्जताणं देवकदच्छुपादिसु एगागारे एगबंधणबद्धं पडि विरोहाभावादो। ते कत्थ लभंति? वल्लरिदाहे वा देवकदच्छुए वा महावणदाहे वा लभंति । पुणो एदेसिमोरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरेसु पत्तेयं वट्टाविदेसु पत्तेयसरीरदव्ववग्गणा उक्कस्सा होदि । जहण्णादो उक्कस्ता असं. ज्जगुणा । को गुणगारो? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।
पुढवि-आउ-ते उ-वाउकाइया देव-णेरइया आहारसरीरा पमत्तसंजना सजोगि-अजोगिकेवलिणो च पत्तेयसरीरा वुच्चंति; एदेसि णिगोदजीवेहिं सह संबंधाभावादो। विग्गहगदीए वट्टमाणा बादर-सुहमणिगोदजीवा पत्तेयसरीरा ण होंति ; णिगोदणाम-कम्मो. दयसहगदत्तेण विग्गहगदीए वि एगबंधणबद्धाणंतजीवसमूहत्तादो। जदि विग्गहगदीए वट्टमाणासेस जीवा पत्तेयसरीरा होंति तो पत्तेयवग्गणाओ अणंताओ होज्ज। ण च एवं, असंखेज्ज लोगमेता होंति त्ति अविरुद्धाइरियवयणेण अवगदत्तादो। विग्गहगदीए
तेजस्कायिक पर्याप्त जीव आवलिवर्गसे असंख्यातगुणे नहीं हो जाते तब तक इनकी संख्या और उसी क्रमसे द्रव्यको बढाते हुए ले जाना चाहिए। अथवा एक बन्धनबद्ध तत्प्रायोग्य असंख्यात जीव लेने चाहिए; क्योंकि, देवकृत झाडियों में लगी हई अग्नि में बादर तेज कायिक पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके एक स्थानमें एक बन्धनबद्ध होने में कोई विरोध नहीं आता।
शंका-एक बन्धनबद्ध वे जीव कहाँ उपलब्ध होते हैं ?
समाधान- लताओंका दाह होते समय, देवकृत झाडियोंमें या महावनका दाह होते समय एक बन्धनबद्ध उक्त जीव उपलब्ध होते हैं ।
पुनः इनके औदारिक, तैजस और कार्मणशरीरोंके पृथक् पृथक् बढाने पर प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणा उत्कृष्ट होती है ! यहां जघन्य वर्गणासे उत्कृष्ट वर्गणा असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, देव, नारकी, आहारकशरीरी,प्रमत्तसंयत, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये जीव प्रत्येकशरीरवाले होते हैं, क्योंकि, इनका निगोद जीवोंके साथ सम्बन्ध नहीं होता । विग्रहगतिमें विद्यमान बादर निगोद जीव और सूक्ष्म निगोद जीव प्रत्येकशरीरवाले नहीं होते हैं, क्योंकि, निगोद नामकर्मके उदयके साथ गमन होनेके कारण विग्रहगतिमें भी एक बन्धनबद्ध अनंत जीवोंका समूह पाया जाता है । यदि विग्रहगतिमें वर्तमान अशेष जीव प्रत्येकशरीर होते हैं ऐसा माना जाय तो प्रत्येक वर्गणायें अनन्त हो जावें । परन्तु ऐसा है नहीं; क्योंकि, वे असंख्यात लोक प्रमाण होती है ऐसा अविरुद्धभाषी आचार्योंके वचनोंसे
ता० प्रती 'काऊण पुणो णेदव्वं ' इति पाठः । ४ता० प्रती '-क्काइयपज्जत्ताणं व कद-' इति पाठः। *ता० प्रती 'वद्रमाणा सेस-' इति पाठ:1
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