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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[ ३१ vertersnesstoratorrentroes0000000rsert:00660**sterहै । इसमें सूत्र संख्या-४-१०० से संस्कृतीय 'राज' धातु के स्थान पर 'रेह' आदेश; ४-२३६ से प्राकृत हलन्त धातुओं के विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३-१४२ से वर्तमान काल के बहुवचन में प्रथम पुरुष में (न्त' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रेहन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
गिरिणो (द्वितीयान्त बहुवचनान्त) रूप की मिद्धि सूत्र-संख्या -१८ में की गई है। तरुणी (द्वितीयान्त बहुवचनान्त) रूप की मिद्धि सूत्र-संख्या ३-१८ में की गई है। पेच्छ किया पद) रूप की सिद्धि मन्त्र संख्या १-२३ में की गई है। गिरी (द्वितीयान्त बहुवचनान्त) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या -१८ में की गई है। तरू (द्वितीयान्त बहुवचनान्त) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या :-१८ में की गई है। यहाई (प्रथमान्त बहुवचनान्त) रूप की सिद्धि सूत्र संखया --20 में की गई है। महूई (प्रथमान्त बहुवचनान्त) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या -70 में की गई है। गिरि रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२ में की गई हैं। तरं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१६ में की गई है। पच्छा रूप की सिद्धि सूत्र--संख्या ३-४ में की गई है। पच्छे रूप की सिद्धि सूत्र -संख्या ३-४ में की गई है ॥३-२२।।
ङसि-ङसोः पु-क्लीवे वा ।। ३--२३ ॥ पुति क्लीवे च वर्तमानादिद्वतः परयो सि सोणों वा भवति ।। गिरिणो । तरूणो । दहिणो । महुणो श्रागो विमारो वा । पक्षे । उसेः । गिरीश्रो । गिरीउ। गिरीहिन्ती । तरूनी । तरूउ । तरूहिन्तो ।। हिलुको निषेत्स्यते ।। उसः। गिरिस्स । तरुस्स | सि उसो रिति किम् । गिरिणा । तरुणा कधं ॥ पुक्लीव इति किम् । बुद्धी । घेणूथ लद्ध समिद्धि वा । इदुत इत्येव । कमलाओ । कमलस्स |
अर्थ:--प्राकृतीय इकारान्त उकारान्त पुल्लिंग और नपुंसक लिंग शब्दों में पंचमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'अस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से (प्राकृत में) 'णो' आदेश की प्राप्ति होती है । इसी प्रकार से इन्हीं प्राकृतीय इकारान्त सकारान्त पुल्लिंग और नपुंसक लिंग शब्दों में षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतोय-प्रत्यय 'उस्' के स्थानीय रूप 'अस्' के स्थान पर भी वैकल्पिक रूप से (प्राकृत में) 'णो' आदेश को प्राप्ति होती है। पुल्लिंग वाले इकारान्त