________________ (41) अर्हत् की अवधारणा पर यहाँ पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अंग समवाय में अर्हत् परमेष्ठी के 34 अतिशय तथा वाणी के पैंतीस अतिशयों का निरूपण किया है। साथ ही एक समय में उत्कृष्टता कितने अर्हत् हो सकते हैं? इस का वर्णन है। अतीत-अनागत तथा वर्तमान के अर्हत् परमेष्ठी के अभिधानों की भी सूची यहाँ दी गई है। ___पंचम अंग सूत्र व्याख्या प्रज्ञप्ति के प्रारम्भ में ही पंच परमेष्ठी को नमस्कार करके ख्याति प्राप्त नमस्कार मंत्र के पंच पदों का उल्लेख किया है। इस सन्दर्भ में अर्हत् परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। वृत्तिकार अभयदेवसूरीने अर्हत् परमेष्ठी का अर्थ-घटन भी सुन्दर रीति से किया है। साथ ही 'शक्रस्तव-नमुत्थुणं' जो कि शकेन्द्र के द्वारा स्तुत्य है, अर्हत् परमेष्ठी की स्तुति की गई है। अर्हत् परमेष्ठी के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, परिनिर्वाण आदि महोत्सवों में देवों का आचार बताया गया है तथा उनके माहात्म्य को इंगित किया है। उनकी आशातना व नमस्कार के महत्फल का भी वर्णन है। अर्हत् प्रभु के ज्ञान की पराकाष्ठा भी द्योतित की गई है। अर्हत् महावीर के साथ ही साथ अर्हत् पार्श्वनाथ की प्ररूपणा को भी इसमें गुम्फित किया है। ___ ज्ञाताधर्मकथाङ्ग में अर्हत् के जन्म सूचित चतुर्दश स्वप्नों का तथा अर्हत् मल्ली जो कि उन्नीसवें तीर्थङ्कर है उनका सम्पूर्ण जीवनवृत्त वर्णित किया गया है। उनके जन्म से लेकर परिनिर्वाण तक का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त अर्हत् अरिष्टनेमि, अर्हत् मुनिसुव्रत आदि का वर्णन भी प्राप्त होता है। एक ही क्षेत्र में, एक समय में दो तीर्थङ्कर कदापि संभव नहीं है। अन्य क्षेत्रीय अर्हत्-तीर्थङ्कर कभी भी सम्मिलित नहीं हो सकते, यह भी यहाँ उद्घाटित हुआ है। उपासकदशाङ्ग में अर्हत् के नामस्मरण, पर्युपासना के महत्फल का उल्लेख है। तो अंतगडदशाङ्ग में नाम-मात्र से अर्हत् अरिष्टनेमि का आलेखन है। इस प्रकार एकादश अंग आगमों में अर्हत् परमेष्ठी संबंधित विचारणा की गई है। अंग बाह्य आगमों में प्रथम उपांग औपपातिक सूत्र में पूर्वागमानुसार अर्हत् परमेष्ठी की स्तुति नमुत्थुणं सूत्र परक लभ्य होती है। अर्हत् की पर्यायें सर्वज्ञ, जिन, केवली आदि