________________ (276) मंदिर का द्वारपाल है, जो कि अशुभ विचारों को मन में प्रवेश करने से रोकता है। ___3. वचन समिति भावना-हिंसक अथवा मन दुखाने वाले वचनों को बोलने का विवेक रखना। वचन समिति की भावना से साधक चिन्तन के द्वारा वचन को शुद्ध और मधुर बनाता है, फलस्वरूप अप्रिय एवं अहितकारी वचन प्रयुक्त नहीं होते। 4. एषणा समिति-भावना-कल्पनीय, निर्दोष आहार, वस्त्र, पात्र आदि आवश्यकीय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए साधु अदीन होकर गवेषणा करता है। उसकी प्राप्ति के लिए प्रयास करता है। 5. आदान निक्षेपणा समिति-साधु जीवन में आवश्यकतानुसार रखे गये उपकरणों का उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाता है। प्रतिलेखना और प्रमार्जना करके ही उनको ग्रहण करना तथा उनको उठाना यह निक्षेपणा समिति है। इस प्रकार इन भावनाओं के चिन्तन-मनन एवं परिपालना से अहिंसामहाव्रत परिपुष्ट होता है। समवायांग में भी इन पाँच भावनाओं का प्रतिपादन किया गया है। अहिंसा महाव्रत में अपवाद आगमिक दृष्टिकोण से मूल आगम ग्रन्थों में विशेष रूप से अपवादों का उल्लेख नहीं किया गया। उसमें भी जो अपवाद है उनमें त्रस जीवों की हिंसा के लिए किंचित् मात्र भी अपवाद का निषेध है। परिस्थतिवशात् मात्र वनस्पति काय एवं जल का स्पर्श एवं आवागमन में अपवाद का उल्लेख है। यद्यपि निशीथचूर्णि आदि परवर्ती ग्रन्थों में मुनिसंघ या साध्वीसंघ के रक्षणार्थ सिंह आदि हिंसक प्राणियों एवं दुराचारियों की हिंसा संबंधी अपवादों का उल्लेख है। परवर्ती ग्रन्थों में जिन अधिक अपवादों का उल्लेख है उसके साथ संघ-रक्षा को प्रधानता दी गई है। इस आधार पर धर्म प्रभावना के निमित्त होने वाली जल, वनस्पति एवं पृथ्वी संबंधी हिंसा को स्वीकृति प्रदान की है। जैन परम्परा की आधारशिला अहिंसा है। जीव दया, जीव रक्षा का संबंध अहिंसा भावना की परिपूर्णता पर ही निर्भर है। प्राणिमात्र के प्रति सद्भावना मैत्री 1. समवायांग 5 2. निशीथ चूर्णि 289