________________ (288) निमित्त मिलने पर सत्ता रूप में (बीजरूप) में रही हुई वासना के द्वारा पतनमार्ग पर अग्रसर हो सकता है। इन निमित्तों से दूर रहने के लिए साधु को अत्यन्त सावधानीपूर्वक जागृत रहना आवश्यक है। अतः ब्रह्मचर्य व्रत की सुरक्षा के लिए साधु को किस प्रकार सावधानी रखनी चाहिये, उसका उत्तराध्ययनसूत्र में उल्लेख है कि साधु को__1. स्त्री, पशु और नपुंसक जिस स्थान पर रहते हों, उसका त्याग करना चाहिये। 2. श्रृंगार-रसोत्पादक स्त्री/कथा नहीं करनी चाहिये। 3. साधु स्त्रियों के साथ एक साथ आसन पर नहीं बैठे (उनका स्पर्श भी न करे)। 4. स्त्रियों के अंगोपांग विषय-बुद्धि से न देखे। 5. निकटवर्ती स्त्रियों के कुंजन, गायन, हास्य क्रन्दित शब्द, रुदन और विरह के विलाप का साधु श्रवण न करे। 6. गृहस्थ जीवन में भोगे हुए भोगों (रति क्रीड़ाओं) का स्मरण भी न करे। 7. पुष्टिकारक (गरिष्ठ) आहार न करे। 8. मर्यादा से अधिक भोजन न करे, प्रमाणोपेत आहार करे। 9. शरीर की विभूषा (शृंगार) न करे। 10. इन्द्रियों के विषय में आसक्ति न रखे। वास्तव में तो साधु को उस स्थान का तुरन्त ही परित्याग कर देना चाहिये, जहाँ उसे व्रत भंग की संभावना नजर आती हो। ब्रह्मचर्य की रक्षा के उपायों को आगम साहित्य में 'गुप्तियाँ' और समाधिस्थान भी कहा गया है। आगम साहित्य में इसके नौ प्रकारों का निर्देश किया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र, समवायांग सूत्र, में इसका वर्णन उपलब्ध होता है१. उत्तरा. 16.1-1 2. उत्तराध्ययन 16.14 3. उत्तराध्ययन 16.1-10 4. समवायांग-९