Book Title: Panch Parmeshthi Mimansa
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

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Page 348
________________ (345) व्याकरण दिवादिगण के ज्ञान-बोध अर्थ में रहे 'मन्' धातु के 'त्र' प्रत्यय से निष्पन्न मंत्र शब्द की व्याख्या तथा व्युत्पत्ति विविध प्रकार से हो सकती है। 'मननात् त्रायते यस्मात् तस्मान्मन्त्रः प्रकीर्तितः'- मनन करने पर जो अक्षर अपना रक्षण करते हैं, उन अक्षरों को मंत्र कहा जाता है। पूर्वाचार्यों एवं मंत्रविदों द्वारा किए गये विधान एवं अर्थ निम्न हैं 1. जो पुरुष देवता से अधिष्ठित हो। 2. जो पाठ सिद्ध हो। 3. विशिष्ट अक्षरों की रचना विशेष जो देवों से अधिष्ठित हो।' 4. जिसका मनन करने से त्राण-रक्षण होता हो।' ___5. जिसमें उत्कृष्ट व्यक्तियों अथवा देव देवियों आदि का आदर सत्कार करने में आया हो, वह मंत्र है। 6. योगी पुरुष अपनी दिव्य योग दृष्टि से सामर्थ्य का साक्षात्कार करके विविध कार्यों के लिए जो विविध अक्षरों की योजना करते हैं, उनको मंत्राक्षर कहा जाता है। ___ इन पाँचों ही अर्थों का घटन नमस्कार मंत्र में होने से यह मंत्र-योग्यता धारण करता है। मंत्र व्याकरण', ऋग्वेद, मनुस्मृति', वाराही तन्त्र, रघुवंश, श्रीमद् भागवत', सिद्धान्त कौमुदी, बृहन्नीलतंत्र', महाभारत'२, ब्रह्मवैवर्त आदि ग्रन्थ मंत्र योग्यता को प्रकट करने वाले हैं। नमस्कारमंत्र की रचना सिद्ध-पुरुषों के द्वारा होने से यह सिद्ध मंत्र भी है तथा परम उच्चकोटि का मंत्र होने से ही इसे वरमंत्र, परममंत्र या महामंत्र भी कहा गया है। श्री हरिभद्रसूरिजी ने 'योगबिन्दु' के पूर्वसेवा अधिकार में इसे 'मृत्युञ्जयमंत्र' कहकर सम्मानित किया है।" 1. नमस्कार नियुक्ति 2. पंचकल्प भाष्य 1, धवला. 3 धि., पंचाशक 1 कल्प, निशीध चूर्णि) 3. पंचाशक टी 13 वि 4. तंत्र शास्त्र, पिंगिला मत, षोडशक 7 विव., रुद्रयामल, ललिता सहस्र 5. मंत्र व्याकरण 6. ऋग्वेद 67.4.74 : विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर 7. मनुस्मृति 7.217, 2.16 8. रघुवंश 1.61 : निर्णयसागर प्रेस, बम्बई। 9. श्रीमद् भागवत 3.1.12 गीताप्रेस गोरखपुर 10. सिद्धान्त कौमुदी 5.3.7 11. बृहन्नीलतन्त्र 2 पटल 12. महाभारत 5.193.5 : जोशी शंकर नरहर, पुण्यपत्तन 13. ब्रह्मवैवर्तपुराण गणपति खण्ड 44 अध्यायः मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली 14. योगबिन्दु 34 : जैन ग्रन्थ प्रकाशन सभा, अहमदाबाद

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