________________ (355) करने के लिए समस्त कर्मावरणों का क्षय करने के लिए सतत उपक्रम करते हुए जझ रहे हैं। इस प्रकार इस विराट् विश्व की सारी पवित्र,शक्तिसम्पन्न आत्माएँ जो किसी सम्प्रदाय, धर्म विशेष, जाति-पांति की नहीं, बल्कि सबकी है, वे सर्व इसके साथ जुड़ी है। __इस महामंत्र में शरण-स्मरण व समर्पण है। इसकी प्रतिध्वनि में कोई याचना नहीं, कोई माँग नहीं, कोई कामना नहीं। इसके साथ जुड़ा है-आत्मा का जागरण, चैतन्य शुद्ध स्वरूप का उद्घाटन / आत्म-जागृति के अवसर पर सर्व उपलब्ध हो जाना सहज है। परमात्म स्वरूप की प्राप्ति अर्थात् पूर्णता की उपलब्धि है। त्रिदोषशामक-त्रिगुणवर्धक-त्रिपदमंत्र : पंचपरमेष्ठी परमेष्ठी मंत्र का प्रथम पद है-नमो अरिहंताणं 'नमो' यह मंगलवाचक है, 'अरिहं' यह उत्तम वाचक है और 'ताणं' शरण वाचक है। इस प्रकार मंगल यह ज्ञान है, उत्तम दर्शन है और शरण यह चारित्र है। ज्ञान के द्वारा अमंगल रूप राग का नाश होता है। दर्शन के द्वारा अधम रूप द्वेष का नाश होता है। चारित्र द्वारा दुष्ट ऐसे मोह का नाश होता है। राग स्वपक्षपातरूप होने से दुष्कृतगर्दा का विरोधी है। द्वेष परद्वेष होने से सुकृत-अनुमोदना का प्रतिपक्षी है। मोह-यह मिथ्याज्ञानरूप और मिथ्यादर्शन रूप होने से सम्यग् शरणगमन का विरोधी है। यह त्रिपदमंत्र है। दुष्कृतगर्दा का मूल मन है, सुकृत सेवन का मूल मन और वचन है और शरणगमन का मूल मन-वचन-काया है मन के द्वारा दुष्कृतगर्दा, मन-वचन के के द्वारा सुकृतप्रशंसा और मन-वचन-काया के द्वारा शरणगमन अर्थात् चारित्रपालन होता है। इस प्रकार यह त्रिगुणवर्धक है। वात, पित्त और कफ के विकारों का भी शमन इससे होता है। रागदोष वातवर्धक है, द्वेषदोष पित्तवर्धक है और मोहदोष कफवर्धक है। दुष्कृतगर्हा द्वारा वातदोष शमन होताहै, सुकृतानुमोदना द्वारा पित्तदोष का शमन होता है और शरणगमनादि द्वारा कफ दोष का शमन होता है। इस प्रकार प्रथम पद मन, वचन और शरीर के त्रिदोष के शामक है तथा त्रिगुणवर्धक है। मोक्ष और विनय का बीज ___ 'नमो' पद मोक्ष का बीज है, क्योंकि 'नमो' पद के द्वारा मुक्ति, मुक्तिमार्ग, और मुक्तिमार्ग साधक महापुरुषों को प्रणाम होता है।