Book Title: Panch Parmeshthi Mimansa
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

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Page 369
________________ (366) परिशिष्ट-1 पंच परमेष्ठी-साधन-विधि कोष्टक पंच परमेष्ठी की साधना किस प्रकार की जाये? यहाँ पूर्वाचार्यों द्वारा कोष्टक के द्वारा इसकी साधनाविधि का निर्देश दिया गया है। अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंच पदों की साधना विधि का उल्लेख अलग-अलग रूप से किया गया है। इसमें उनके तीर्थंकर, वर्ण, दिशा, अंगन्यास, तत्त्व, आकार, साध्य-हीं, अंशक, स्वर, वर्ग, ग्रह, तिथि, मास, राशि, वार नक्षत्र, रस, मंत्र, फल आदि के माध्यम से पाचों ही परमेष्ठी विषयक निर्देश किया गया है। __तात्पर्य यह है कि एक पद की साधना इस रूप में, इन सभी योगों के साथ की जाये तो तदनुसार फल अवश्यमेव प्राप्त होता है। यहाँ मंत्रविधि का वर्णन इस रूप में किया गया है 1. अर्हत् / 1. तीर्थंकर-चतुर्विंशति जिनेश्वरों में अर्हत् परमेष्ठि के अन्तर्गत चन्द्रप्रभु एवं सुविधि जिन को विभाजित किया गया है। 2.वर्ण-श्वेतवर्ण 3.दिशा-ब्रह्मस्थान 4.अंगन्यास-में मस्तक 5. तत्त्वनिर्देश-पृथ्वीमण्डल 6. आकार, साध्य-ह्रीं-वर्तुल 7.अंशक-पुरुष 8.स्वर-अ, आ 9. वर्ग-क, च, ट, त, प, य, श 10. ग्रह-चन्द्र, शुक्र 11. तिथि-नन्दा (1, 6, 11) 12. मास-कार्तिक, चैत्र 13. राशि-वृष, कन्या, कुंभ 14. वार-सोम, मंगल 15. नक्षत्र-कृत्तिका, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, घनिष्ठ, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद। 16. रस-अम्ल 17. मन्त्र-ऊँ हाँ अर्हद्भ्यो नमः। 1. पंच परमेष्ठीसाधन-विधि-फल कोष्टक उद्धृत-नमस्कार स्वाध्याय 1 (प्राकृत) पृ. 239

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