________________ (380) परिशिष्ट-3 मृत्यु के समय नमस्कार महामंत्र के श्रवण के परिणाम के ऐतिहासिक सन्दर्भ विमलसूरि कृत "पउमचरियं" (अनुमानतः ई. सन् तीसरी-चौथी शताब्दी) में दो उल्लेख प्राप्त होते हैं(1) एक समय तडित्केशी राजा रानी के साथ वन में क्रीडार्थ गया था। अचानक एक वृक्ष से एक बन्दर रानी के ऊपर गिरा। घबराये हुए उस बन्दर ने रानी के स्तन पर नखक्षत किये। जिसने क्रोधित होकर राजा तडित्केशी ने उसे तीर मारा। जिससे वह उछल कर एक ध्यानस्थ मुनि का पास गिरा। मुनि ने अनुकंपा से उसे नवकारमंत्र सुनाया। फलस्वरूप दूसरे जन्म में वह देव बना। अह पंच नमोक्कारो दिन्नो से साहुणा णुकम्पाए। मरिऊण समुप्पन्नो, उदहिकुमारो भवणवासी // 6/105) पउमचिरयं (2) सीता का अपहरण करके जाते हुए रावण के साथ युद्ध करते हुए जटायु घायल हुआ था। पत्नि के वियोग से दुःखी राम जब वन में सीता की शोध कर रहे थे, तब उन्होंने जमीन पर कराहते हुए जटायु को देखा। उन्होंने मरते हुए पक्षी के कान में (कर्म-जाप) नमस्कार मंत्र सुनाया, तब अपवित्र देह का त्याग करके जटायु देव बना। कान्ता-विओग-दुहिओ, तं रण्णं राहवो गवे सन्तो। पेच्छई तओ जडागिं, केकायन्तं महिं पडिये।। पक्खिस्स कण्णजावं, देइमरन्तस्स सुहयजोएणं। मोत्तणं पूइदेहं, तत्थ जडाउ सुरो जायो 1144/54-55 (3) पार्श्व स्वामि के चारित्र में पार्श्वनाथ भगवान कमठ तापस को दया-धर्म समझाते हैं। पंचाग्नि तपते कमठ तामस के पास से सेवक को कहकर सुलगते काष्ठ को चिराकर उसमें से नाग कुटुम्ब को बाहर निकालते है। अर्धजले सर्प को अंत समय नमस्कार-मंत्र सुनाते हैं। जिसके फलस्वरूप वह नागलोकाधिप बनता हैतओ भगवया णिय-पुरिस-वयणेण दवाविओ से पंचणमोक्कारो पच्चक्खाणं च, पडिच्छियं तेणं। ताव य कय णमोक्कार पच्चक्खाणो कालगणो समुप्पण्णो णागलोयम्मि सयल-णाग लोयाहिवत्तणेणं त्ति। चउपन्न महामुरिम चरिय 5.62 / (4) महावीर चरित्र में भी इसी प्रकार कम्बल सम्बल देव का कथानक मिलता है। पूर्वजन्म में वे बैल थे। अपने धार्मिक स्वामि का अनुकरण करके वे भी धर्मध्यान करते थे। उनकी मृत्यु के समय उनके स्वामी ने उनको नवकार-श्रवण कराया, जिससे मरकर वे नागकुमार देव बने। तत्थ ते णावि चरंति, णावि पाणितं पिबंति, जाहे सव्वहा ण इच्छंति ताहे सो सावतो तेसिं भत्त पच्चक्खाति णमोक्कार व से देति, कालमासो कालं किच्चा