Book Title: Panch Parmeshthi Mimansa
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

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Page 363
________________ (360) आज्ञा-श्रवण द्वारा प्राप्त, मनन-आचरण द्वारा जीवन में व्याप्त तथा निदिध्यासन कर्मक्षय द्वारा समाप्त होता है। नवकार मंत्र की वैज्ञानिकता 'नमो अरिहन्ताणं' में सफेद रंग है। प्राणिक क्रिया में एक श्वास में 21% प्रतिशत ऑक्सीजन होता है। यदि ऑक्सीजन की गति को संयम से बढ़ा दिया जाये तो धीरे-धीरे अपान पर नियन्त्रण हो जाएगा। अपान ज्यादा नहीं होता, लेकिन थोड़ा भी बहुत ताकत रखता है। 4 प्रतिशत कार्बन डायऑक्साइड होता है और 84 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है और कुछ मशीनरी में पैदा करने की ताकत होती है। नवकार मंत्र में पंच प्राण की क्रिया-पंच बीजाक्षर दिये हैं-ह्रीं आदि और इसके साथ में शरीर के हिस्सों का संबंध जोड़ा है। अर्हत् शब्द पहले रखा है, इससे ज्ञात होता है कि सफेद-श्वेत आभा को हम ज्यादा बल देना चाहते हैं, आत्मानुशासन के लिए वह इसलिए कि इससे 'लाइफ फोर्स' (जीवनशक्ति) को नियन्त्रित किया जा सकता है। ___ 'नमो लोए सव्व साहूणं' में साहू शब्द में जो हू शब्द रखा गया है, वहाँ मुनि को जोड़ा गया है। इस प्रकार हूँ' है मूलाधार का। ह' जो है वह आज्ञाचक्र का। मूलाधार और आज्ञाचक्र एक दूसरे से बंधे हुए हैं। अन्त में हमें मूलाधार को जगाना और फिर आज्ञाचक्र को जगाना है। आज्ञाचक्र को जगाएगें तो मूलाधार स्वतः ही जागेगा। मूलाधार को जगायेंगे तो आज्ञाचक्र खलेगा। ये एक दूसरे से बंधे हुए है। 'साहू' शब्दोच्चारण से मूलाधार से लेकर आज्ञाचक्र तक एक (वायब्रेशन) कम्पन पैदा होगा, इसीलिए सरस्वती-मन्त्र में ओम्-ओम् , हुम्-हूम् ह्रीं ह्रीं रखा गया है। मुसलमान 'अल्लाहू' कहकर पूरा कर लेते हैं। भगवान् बुद्ध ऊँ नमः मणिपदमे हूँ. पूरा कर लेते हैं। सभी ने अलग अलग ढंग से इसे रखा है। जिहोवा में 'हो' पर जोर दिया गया है। इस प्रकार इसकी वैज्ञानिकता साबित होती है। उपसंहार __जैन सम्मत ये पंच परमेष्ठी पद जीवन उत्थान के लिये आदर्श स्वरूप हैं। जो कि मात्र पूजनीय, आदरणीय ही नहीं वरन् आचरणीय हैं / वस्तुतः विश्व के लिए वही आदर्श प्राणीमात्र के लिए उपादेय हो, व्यक्ति निष्ठा न होकर समिष्ट को अपने में समाये हो, वही विश्व को प्रभावित कर सकता है। ये पंच परमेष्ठी पद 1. उद्धृत-तीर्थकर अंक 7-8 वर्ष 10 पृ. 100-101

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