Book Title: Panch Parmeshthi Mimansa
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 355
________________ (352) (2) उसकी मानसिक, आन्तरिक एवं बाह्य शक्तियों का जागरण हो। (3) आत्मा का साक्षात्कार हो। (4) आत्मिक एवं मानसिक ऊर्जा में वृद्धि हो। (5) साधक की दृष्टि बाह्याभिमुखी से अन्तर्मुखी हो। (6) कषायों-आवेगों-संवेगों की तीव्रता में कमी हो, कषाय क्षीण हो। (7) वीतरागता तथा समताभाव का विकास हो। (8) मानव शरीर के शक्ति केन्द्रों, चैतन्य केन्द्रों-चक्रों में प्राण-शक्ति की सघनता होती है, वहीं से वीर्य-शक्ति प्रस्फुटित होती है। महामन्त्र वीर्यवान मंत्र होता है, अतः उससे वीर्य-शक्ति प्रस्फुटित हो जाती है। (9) साधक की संकल्पशक्ति दृढ़ होती है। (10) बाह्य पदार्थों के प्रति साधक की मूर्छा टूटती है। (11) अध्यात्म दोषों-राग द्वेष तथा आवरण, विकार और अन्तराय का नाश होता है। साथ ही मानसिक एवं शारीरिक रोग भी उपशांत होकर साधक शारीरिक और मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है। इन कसौटियों के अतिरिक्त महामंत्र की साधना के विशिष्ट फल अथवा साधक को उपलब्धियाँ भी होती है (1) साधक की इच्छाओं की तृप्ति नहीं, अपितु उनका विसर्जन व समापन होता है। (2) सुख दुःख की पूर्वकालीन मान्यताएँ परिवर्तित हो जाती है, अर्थात् सुख दुःख के बारे में उसका दृष्टिकोण समीचीन बनता है। (3) साधक की अधोमुखी (संसाराभिमुखी) वृत्तियाँ उर्ध्वमुखी आत्माभिमुखी बनती है। (4) मोक्ष मार्ग की उपलब्धि होती है। साथ ही साधक के अन्तर में उस मार्ग पर आगे बढ़ने की अन्तः स्फुरणा जागृत होती है। (5) साधक की आत्म शक्ति (चैतन्यशक्ति) आनन्द और वीर्य शक्ति का समन्वित एवं एक साथ (Simultaneous) विकास होता है। नवकार मंत्र की साधना द्वारा ये सब उपलब्धियाँ साधक को प्राप्त होती है, अतः नवकार मंत्र निश्चित ही महामंत्र है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394