________________ (351) यन्त्र जिस तरह किसी शक्ति के आसन/आधार बनते हैं, ठीक उसी तरह मंत्र को प्रकट होने के लिए भी कोई यन्त्र/आधार अथवा सम्बल चाहिये। योग से यन्त्र सुलभ होता है और फिर उस रास्ते से मन्त्र प्रकट होता है। इसी प्रकार यह नमस्कार महामंत्र मात्र शब्द समूह ही नहीं है, अर्थ से पार भी इसका अस्तित्व है। अर्हत् या नमो शब्द एवं उसका अर्थ तो है ही, किन्तु शब्द और अर्थ से आगे भी है। इसका गाम्भीर्य इतना है कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। शब्द की सम्यक् गहराईयाँ उसकी साधना में से प्रकट होती है। जब वह साधना हमारी निज की गहराईयों से जुड़ जाती है तब कोई स्पष्ट घटना घटित होती है, जिसे हम कहते है अलौकिक, अप्रतिम। किन्तु वह होती है अत्यन्त सहज-स्वाभाविक है। मन्त्र जब अस्वाभाविक होता है तब लौकिक कहलाता है, किन्तु अपने स्वभाव में वह अलौकिक ही होता है। नमस्कार महामंत्र को चमत्कार के तल से ऊपर जो खोजते हैं. वे मोक्ष के साधक होते हैं। साधनाकाल में कई चमत्कार घटित होते हैं जिनसे बिन्धकर कच्ची मनोभूमिका पर खड़े साधक अपनी यात्रा तोड़ बैठते हैं, किन्तु जो यह मानते हैं कि चमत्कार साधना-यात्रा के मामूली पड़ाव हैं, वे अपनी यात्रा को अबाध रखते हैं और मंत्र को अपनी मूल साधना का एक सोपान समझते हैं। वे मन्त्र के माध्यम से सतत स्वात्म गहराईयों में उतरते जाते हैं और 'शब्द के भीतर सुस्थित शब्द' उन्हें आहिस्ता-आहिस्ता वहाँ से ले जाता है, जहाँ आत्मा की अनन्त शक्तियों के प्रकट होने की भरपूर संभावनाएँ रहती है। वस्तुतः जब आत्मा निरम्बरा/चिदम्बरा/ज्ञानाम्बरा हो जाती है, तब होती है मंत्र की चरम अभिव्यक्ति। मन्त्र अपनी गहराईयों में स्वानुभूति है और स्वानुभव से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है। जानें हम कि मन्त्र शक्ति है, यंत्र आधार है और तन्त्र विस्तार है। मन्त्र बीज है, यन्त्र फल है/देह है, तन्त्र जड़ से अन्तिम पत्ते तक का फैलाव है। वस्तुतः ये तीनों अलग-अलग अस्तित्व नहीं है, एक हैं, परस्पर पूरक है। महामन्त्र नमस्कार आध्यात्मिक साधना का एक सीढ़ी-दर सीढ़ी कार्यक्रम है। इसका एक एक वर्ण मन्त्र है, कुल मिलाकर यह महामन्त्र है। इसका ओप/इसकी शक्ति अद्भुत है, विलक्षण है। नवकार मंत्र का महामन्त्रत्व महामंत्र वह है, जिसकी साधना से(1) साधक के विकल्प शान्त हों।