________________ (343) जिनप्रभसूरि (वि.शती 14), आदि अनेक प्राचनी तथा अर्वाचीन आचार्य अनुभवी समर्थ मंत्रवादी थे। आर्य स्थूलभद्र जैसे स्थविर को तो बिना कारण, अनावश्यक मंत्र-विद्या का प्रयोग करने से दण्ड दिया गया। यही कारण है कि सख्त प्रतिबंध होने से अन्य धर्मों की भांति जैनधर्म में इस मंत्रवाद से आचारमार्ग में विकृति का पदार्पण न हो सका। दूसरी ओर जहाँ ऐहिक फल की आशा से मंत्रोपासना करते, वहाँ जैनों का लक्ष्य एकमात्र कर्म-निर्जरा (नाश) था। इसी कारण विशेष रूप से शाक्त लोगों के मंत्रवाद से जैनों के मंत्र तथा विद्या सर्वथा पवित्र एवं निर्दोष विधिसाध्य होने से भी मंत्रवाद आचारों में विकृति उत्पन्न नहीं कर सका। मंत्र स्वरूप स्थापना नमस्कार सूत्र ने मंत्रस्वरूप कैसे धारण किया? इस मंत्र को अर्थ रूप से अरहन्त देव द्वारा प्ररूपित किया गया है तथा इसे शब्द-देह' में गणधर भगवन्तों ने गुम्फित किया है। इसकी रचना सारगर्भित, सुन्दर, संदेहरहित है एवं आप्तवाणी होने से इसे सूत्र कहा गया एवं निरन्तर मनन करने योग्य होने से इसने मंत्र स्वरूप भी धारण किया। ___ इस नमस्कार सूत्र को जैन शास्त्रों में अनेक अभिधानों से अलंकृत किया गया है। यथा-पंचमंगल, पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, पंच नमस्कार, परमेष्ठी नमस्कार, पंच गुरु नमस्कार, पंच गुरु नमस्कृति, जिन नमस्कार, नमुक्कार, नमोक्कार, पंचनमोक्कार, नवकार, नोकार आदि। क्या इस नमस्कार मंत्र की गणना मंत्र की कोटि में हो सकती है? इस शंका का समाधान करते हुए यह जानना आवश्यक है कि मंत्र से तात्पर्य क्या है? मंत्र किसे कहा जाये? ___ "मंत्र एक अक्षर या अक्षर समूह है अथवा एक शब्द या शब्द श्रृंखला हो सकता है।" तंत्र शास्त्र में प्रत्येक ध्वनि (वर्ण) किसी देवता विशेष के ध्वनिस्वरूप या किसी देवता के तंत्र से सम्बन्धित माना गया है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्ण के द्वारा होता है। इसलिए विशेष वर्णों या अक्षरों का संयोग, विशेष देवताओं के ध्वनि स्वरूप माना गया है। ऋषियों ने भी अपनी दिव्य दृष्टि से देखा था कि देवताओं के ध्वनि प्रतीक विशिष्ट रंग भी होते हैं। प्रत्येक मंत्र अपना एक असाधारण व्यक्तित्व भी रखता है। मंत्र को दोहराना या उस पर एकाग्र होना सत्य 1. विशेषा. भा. 1161 आवश्यक नियुक्ति गा. 1921