Book Title: Panch Parmeshthi Mimansa
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

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Page 345
________________ (342) तिरस्कृत दृष्टि से देखा है। यहाँ तक कि इसकी साधना को भी 'पापश्रुतप्रसङ्ग' कहा है। साधक चाहे भिक्षु हो अथवा भिक्षुणी, उसे मंत्र-तंत्र से दूर रहने का उपदेश दिया गया है। हो सकता है वशीकरण, उच्चाटन, मारण, आकर्षण आदि जो मंत्र की विकृत अवस्था है, उसका प्रचलन होने से निषेध किया गया हो। __ यहाँ एक बार पर पुनः ध्यान देना है कि जहाँ इन आगमों में मंत्र साधना का निषेध किया है, वहाँ भगवती सूत्र', ज्ञाता धर्मकथाङ्ग, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, गोम्मटसार' ( (जीव काण्ड) (वि. 11 श.) में जहाँ-जहाँ गणधरों एवं स्थविरों के गुण-वर्णन किये हैं, उसमें उनको वहाँ मंत्र-प्रधान' शब्द से भी विभूषित किया है। साथ ही मंत्र साधना को उपादेय भी मान्य किया है। इस प्रकार दोनों में विरोध उपस्थित होता है। यहाँ तात्पर्य यह है कि मंत्रसाधना में उन मंत्रादि का निषेध किया गया है, जो विकृति स्वरूप में हो। जिसमें आत्म-साधन न हो, हिंसादि प्रधान हो। दूसरी ओर आगमों के अन्तर्गत बारहवाँ अंग 'दृष्टिवाद' जो कि व्युच्छिन्न (नष्ट) हो गया है, उसमें चतुर्दश पूर्वो का भी समावेश होता है। चूंकि ये भी काल के प्रभाव से विच्छिन्न हो गये हैं। इनमें से दसवाँ पूर्व जो कि 'विद्या-प्रवाद' नामक था, उसमें मंत्र, तंत्र, यंत्र और विद्याओं की प्रचुरता से रचना की गई थी। साथ ही हजारों वर्षों से जैनाचार्यों के द्वारा मंत्रशास्त्र की रचना, उपासना होती चली आई है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्रसंगोपात्त जैन शासन (धर्म) की रक्षा के लिए लाभालाभ को लक्ष्य में रखकर अनेकानेक आचार्यों ने विशिष्ट मंत्रोपासना की है। आर्य स्थूलभद्र (वि.पु. 4 शती) वज्र स्वामी (वि. 2 शती), आर्य खपुटाचार्य (वि.श.1.) आर्य मंगु (वि.पू. 1 शती), पादलिप्त सूरि (वि. शती 3), सिद्धसेन दिवाकर (वि. शती 5) , मानतुंग सूरि (वि.शती 7), हरिभद्र सूरि (वि.शती 8), मानदेवसूरि (वि. शती 1), नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि (वि.शती 11), कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य (वि. शती 12), जिनदत्तसूरि (वि.शती 12), वादिवेताल शांतिसूरि (वि. 11 शती), 1. भगवती 2.95 2. ज्ञाता. 1.1.4 3. उत्तरा. 20.27 4. दश. 9.1.11 5. गोम्मट, 184.419/18, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली 6. समवाय. 14.2 नंदी सूत्री 109, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.)

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