________________ (340) हुई। 'महानिशीथ' सूत्र में कथन है कि "वज्रस्वामी ने व्युच्छिन्न पञ्चमङ्गल की नियुक्ति आदि का उद्धार करके इसे मूल सूत्र में स्थान दिया तथा उसके पश्चात् आचार्य हरिभद्र ने इसकी खंडित प्रति के आधार से इसका उद्धार किया।" - इसे 'पञ्चमङ्गलमहाश्रुतस्कंध' कहने का क्या तात्पर्य है? सामान्यतया जैनागमों को श्रुत शब्द से अभिप्रेत किया जाता है। क्योंकि उसमें जो ज्ञान संग्रहित है, वह कर्णपथ के द्वारा श्रवण करके संचित किया गया है। उस श्रुत के समुदाय को 'स्कंध' कहा गया है। स्कंध से तात्पर्य समूह अथवा खण्ड भी है, तो कहीं-कही 'श्रुतस्कंध' का अर्थ द्वादशाङ्ग भी किया है। समस्त आगम ग्रन्थों को श्रुतस्कंध कहा जाने पर भी इस छोटे से सूत्र या मंत्र को 'महा' विशेषण लगाकर इसे 'महाश्रुतस्कंध' कहा गया। इसी से यह समस्त आगमों का सार है। शास्त्रों में एवं इस 'नमस्कार मंत्र' में किसका निरूपण किया गया है? पंच-मंगल अर्थात् पंच पद जो कि मंगल स्वरूप है। ये पंच पद हैं नमो अरिहंताणं। नमो सिद्धाणं। नमो आयरियाणं। नमो उवज्झायाणं। नमो लोए सव्व साहूणं। ये पंच पद हैं, जिनको इस सूत्र में नमस्कार किया है। चार पद चूलिका के हैं - एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिंह, पढमं हवइ मंगलं / / नमस्कार मंत्र की संरचना (शब्द-देह) इन नव पदों में अर्हत् , सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंच परमेष्ठी पदों को नमस्कार किया है। ये पाँचों परमेष्ठी ही उत्तम पुरुष हैं तथा इनके अतिरिक्त अन्य कोई उत्तम पुरुष न होने से इनको किया गया नमस्कार मंगलकारी माना गया है। यह नमस्कार समस्त पापों का प्रकृष्ट रूप से नाश करता है। अतः प्रथम अर्थात् प्रमुख मंगल है। इसमें नवपद, आठ सम्पदा तथा 68 अक्षर हैं। इसमें न किसी व्यक्ति 1. महानिशीथ सूत्र-अध्य. 3 सू. १४-श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थ माला लाखाबावल-शान्तिपुरी (सौराष्ट्र)