________________ (310) उनका कथन है कि "क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि जन्म से नहीं, कर्मानुसार होते हैं जिसका चयन मानवजाति करती हैं। साधु चर्या से समाज में ऊँच-नीच की असमानता खुद-ब-खुद मिट जाती है। उनके उपदेश में इस भावना को मिटाने का विशेष जोर दिया जाता है। वे उपदेश के माध्यम से भी मिटाने का प्रयास करते हैं, यहाँ तक कि उनके उपदेश में ऊँच-नीच, निर्धन-धनवान, नर-नारी, छोटेबड़े आदि का अन्तर नहीं रहता। सभी उनके उपदेश से लाभान्वित हो सकते हैं। इस प्रकार साधु जनजीवन में से जातिवाद की जड़े खोखली करता है तथा जनजन में से असमानता के विष को समाप्त कर समानता की भावना जागृत करता है। यहाँ तक व्यक्ति के साथ समष्टि में भी आमूलचूल परिवर्तन लाने का होता है। वे स्वयं के जीवन में, आन्तरिक वृत्तियों में परिवर्तन करने में रत रहते हैं, तथा अन्यों में भी इस परिवर्तन को क्रियान्वित करने का भरसक प्रयास करते हैं।" इस तथ्य को सभी मान्य करते हैं कि आध्यात्मिक चेतना जागृत करके नागरिकों को विषय और कषाय से विमुख करने में साधु का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिन लोगों ने उनके उपदेश के अनुसार अल्पारम्भी और अल्पपरिग्रही जीवन जीया, उनका जीवन सुखी व सफल हो गया। राष्ट्र का उद्देश्य नागरिकों को सुख-शांति प्रदान करना है। साधु उस राष्ट्रीय कार्य में, शांति यज्ञ में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। इसके विपरीत कई साधु संकुचित और सम्प्रदायवादी दृष्टिकोण से विरत नहीं हो पाते, उनमें सुधार की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि इससे वह समाज का अहित और अकल्याण कर रहा है। लोगों को गुमराह कर रहा है। समाज-राष्ट्र और व्यक्तिगत सुख शांति को भंग कर रहा है। फलतः सद्गति से उन्हें दूर धकेल रहा है। आर्थिक क्षेत्र में जैन साधु का योगदान . . मनुष्य अपना पुरुषार्थ अर्थ, काम, धर्म, मोक्ष, इन चारों की प्राप्ति में लगा रहा है। इन चारों को हम दो भागों में विभाजित कर सकते है- एक सामाजिक, दूसरा आध्यात्मिक। अर्थ और काम सामाजिक पुरुथार्थ है, जिसमें अर्थ साधन है तथा साध्य है काम। धर्म और मोक्ष आध्यात्मिकता से जुड़े हैं, जिसमें धर्म साधन हैं और मोक्ष साध्य। जैन दर्शन वास्तव में मोक्ष दर्शन है, क्योंकि उसका पुरुषार्थ मोक्ष-मार्ग पर अवलम्बित है। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ में समाज को प्रेरित करता है। शेष दो पुरुषार्थों को तो मात्र स्पर्श करता है। वे समाज दर्शन के विषय हैं।