________________ (330) समूल नष्ट हो जाती है। अनन्त वीर्य अनन्त बल स्फुरायमान हो जाता है। सिद्धावस्था के इस गुण के प्राकट्य में यह वर्ण सहयोगी होता है। इस प्रकार यह लाल वर्ण मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त करने में सक्षम सिद्ध होता है। अन्तर्दृष्टि अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन गुण को प्रगट करती है। सर्वज्ञता और द्रष्टाभाव सहभावी है। असद् आचरण से निवृत्ति, अनन्त चारित्र का प्रवर्तन करती है। जब भ्रान्तियाँ टूटती है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है। वस्तुतः अन्तर्दृष्टि, सम्यग्दृष्टि, सम्यक्त्व, सत्य सब एक ही है। फलतः क्षायिक सम्यक्त्व का अधिष्ठान करता है। दुर्बलताओं के अंत में अनंतवीर्य स्फुरायमान होता है। अनन्त अव्याबाध सुख का स्वामी होता है। ___ गतपृष्ठों में हमने ज्ञात किया कि जब लाल रंग को लाल प्रकाश में देखा जाये तो वहाँ लाल वर्ण समाप्त हो जाता है और मात्र प्रकाशमान सफेद रंग का प्रागट्य होता है। सफेद रंग को वैज्ञानिकों ने वर्ण नहीं माना। निर्वर्ण होने से सिद्ध परमेष्ठी का अरूपी गुण विकसित हो जाता है। जब वर्ण, गंध, रस, स्पर्श नहीं होते हैं तो गुरुत्व-लघुत्व नाम शेष हो जाते हैं। अतः अगुरुलघुत्व गुण को विकसित करने में लालवर्ण सक्षम होता है। इस प्रकार सिद्ध पद का लालवर्ण आठ ही गुणों के प्राकट्य में किस प्रकार सहयोगी हो सकता है? इस पर हमने विचारणा की। 3. आचार्यपद पीत (पीला वर्ण) ____ आचार्य पद का ध्यान विशुद्धि केन्द्र (कंठ) पर पीले वर्ण के साथ करते हैं। यह पीला रंग हमारे को सक्रिय बनाता है। यह चैतन्यकेन्द्र भावनाओं का नियामक है, मन का नियामक है। जब तैजस् केन्द्र वृत्तियों को उभारता है, तब विशुद्धिकेन्द्र उन पर नियन्त्रण करता है। इससे आवेग भी नियन्त्रित होते हैं। __ शरीर शास्त्री मानते हैं कि थाइराइड ग्लैण्ड वृत्तियों पर नियन्त्रण करने वाली ग्रन्थि है। इस ग्रन्थि का स्थान भी कंठ है। पीले रंग के साथ इस केन्द्र पर आचार्य का ध्यान करने से हमारी वृत्तियाँ शांत होती है, वे पवित्रता की दिशा में सक्रिय बनती हैं। पीला रंग नाडियों को सक्रिय और मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है। 1. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 55