________________ (332) जितेन्द्रियता' जब चमकते हुए पीले रंग के परमाणुओं को आकर्षित किया जाता है, तो जितेन्द्रिय होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। पद्मलेश्या का अभ्यास करने वाला व्यक्ति जितेन्द्रिय हो जाता है। इस प्रकार पीले रंग की क्षमता है-मन को प्रसन्न करना, बुद्धि का विकास करना, दर्शन की शक्ति बढ़ाना, मस्तिष्क और नाड़ी संस्थान को सुदृढ़ करना सक्रिय बनाना। मस्तिष्क तथा चाक्षुषकेन्द्र पर पीले रंग का ध्यान ज्ञान-तंतु विकसित करने में सहायक होता है। __ आचार्य भगवन्त संघ का नेतृत्व करते हैं। संघ में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पंचाचारों का पालन करवाते हैं। पीले रंग की प्रभावकता से ज्ञान दर्शन के आचार पालन में बल मिलता है। फलतः वीर्य स्फुरायमान होता है। आध्यात्मिक जागरण होने पर दर्शन की विशुद्धि होने पर चारित्र और तपःपूत जीवन का स्वतः निर्माण होने लगता है। आनंद की अभिवृद्धि व चित्त की प्रसन्नता 'सच्चिदानंदमयी स्थिति' में परम सहायक होते हैं। उपाध्याय-नीलावर्ण-(अथवा हरा वर्ण) उपाध्याय पद का ध्यान आनन्द केन्द्र (हृदय) पर नील वर्ण के साथ किया जाता है। नीला रंग शांति देने वाला होता है। यह रंग समाधि, एकाग्रता पैदा करता है और कषायों को शांत करता है। यह नील रंग आत्मसाक्षात्कार में भी सहायक होता है। यह नीला रंग वासनाओं पर अनुशासन करता है। अन्य मतानुसार हरा वर्ण भी उपाध्याय का माना गया है। हरा रंग भावों की निर्मलता का प्रदाता है। शरीर में नीलवर्ण की कमी से क्रोध बढ़ता जाता है। उपाध्याय प्रवर का नील वर्ण के साथ ध्यान किया जाय तो क्रोधादि कषायें तिरोहित हो जाती है। कषायों का उपशमन होना, परिणामस्वरूप क्षमा, शांति आदि गुणों का आत्मसात् होना। आँखों का आपरेशन करने वाला डॉक्टर हरी-नीली पट्टी बांध देता है। शांति प्रदायक होने से। उष्णता के आक्रमण से बचने के लिए। क्रोधादि कषायों की आक्रमकता से बचने के लिए नील वर्ण संयुक्त उपाध्याय का ध्यान शांति का जीवन में आधान करता है। 1. वही पृ 69 3. वही पृ. 31-32 2. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 54-55 4. तीर्थंकर, पृ.७६, 57, 54