________________ . 13370 (337) की आराधना से रंगों का संतुलन होने के साथ निर्मलीकरण भी होता है। उनमें रहने वाली विकृतियाँ दूर होती है। इस प्रकार रंगों की शुद्धि होने से शान्ति का अनुभव होता है। इन परमेष्ठी पदों का रंगों के माध्यम से, इनका आलंबन लेकर ध्यान एवं उपासना की जा सकती है। इन पदों को रंगों में साकार, मूर्तिमन्त किया जा सकता है। वृत्ताकार भी इनको प्रस्तुत किया जाता है। यदि ताबाल में एक छोटा सा कंकर फेंका जाये तो उसमें वृत्ताकार तरंगें उठती है, जो कि लगातार एक के बाद एक वृत्त बनाकर तट तक पहुँचती हैं। इस महामंत्र में अर्हत् पद से लगातार वृत्त पैदा होकर साधु पद तक पहुंचते हैं। ये वृत्त विराम नहीं लेते लगातार बनते चले जाते हैं। फलस्वरूप मनोयोगपूर्वक, निष्ठापूर्वक, की गई उपासना से एक शक्ति पैदा होती है। उत्पन्न हुई यह ऊर्जा मनोविकारों का, कषायों का, अशुभ वृत्तियों का शमन करती है। कर्मों की निर्जरा करती है। अशुभ कृत्यों का शुभ कृत्यों में प्रवर्तन करती है। असत् का सत् में रूपान्तरण करके व्यक्तित्व को निखारती हुई पंच पद मय स्वरूप निर्माण में परम सहायक होती है। __पंच परमेष्ठी के इन रंगों की विशेष चर्चा तीर्थंकर' मासिक के णमोकार मंत्र विशेषांक भाग 1-2, एवं प्रेक्षाध्यान : लेश्या ध्यान में की गई है। * * * * * * * -