________________ (334) * साधु का रंग काला भी इसीलिये किया गया है, क्योंकि साधना का प्रथम सोपान साधु है। साधुत्व का प्रारम्भ श्याम वर्ण से है। चूंकि काला वर्ण अवशोषकता का प्रतीक है, तो साधु को भी सोखने वाला बनना चाहिये। उसे क्रोध आदि कषायों को सोखने वाला बनना चाहिये, यदि कोई उससे वैर करे, तो भी उसे सोखना चाहिये। साधु वह जो जितनी भी बुराईयाँ हो, उस सबको समुद्र की तरह सोख ले। उसे इस तरह का अवशोषक बन जाना चाहिये कि वह जो भी अनुकूल प्रतिकूल हो, उसे आत्मसात् कर ले। साधु अर्थात् उत्तम, अच्छा। वहाँ दोष, बुराई का नामो निशान न रहे। काले रंग में उष्णता और अग्नि दोनों ही है। काले रंग में उष्णता का परिणाम ज्यादा होता है। अग्नि उसके लिए अत्यावश्यक है। साधु को भी अग्नि बहुत जरुरी है, क्योंकि उसको निर्जरा करनी है। उसको अग्नि का शोषण करना ही चाहिये। सोखना यानि सहन करना। काले रंग पर अन्य रंग नहीं चढ़ पाता, वरन् वह अन्य रंगों को अपने समान बना लेता है। इसी प्रकार साधु पर क्षमादि गुणों का रंग लग जाता है, तब उस पर क्रोधादि का, भौतिकवाद का रंग नहीं, चढ़ पाता। वह प्रतिकूलताओं को भी अपने अनुकूल बना लेता है। सहन शक्ति के माध्यम से सब सोख लेता है। अन्यों को प्रतिबोध देकर, त्याग वैराग्य का पाठ पढ़ा कर उसका रंग चढ़ाने का प्रयास करता है। प्रसिद्ध कवि रहीमदासजी ने भी कहा है-रहिमन काली कमरिया, चढे न दूजो रंग। इस प्रकार साधु का काला वर्ण अपेक्षा से संगत प्रतीत होता है। रंगों की विशिष्टताः विलक्षणता ___ यदि इन पांचों पदों में निहित रंगों का, उनकी विशिष्टता तथा विलक्षणता को देखें तो यह ज्ञात होगा कि रंगों का और इन पंच पदों का जो घनिष्ट संबंध है, उसे आचार्यों ने वैज्ञानिक आधार पर संयोजित किया है, उसका शोधन किया है और निर्देश किया है। ध्यान, समाधि के माध्यम से विशिष्ट पद में निहित रंग का अनुसंधान किया है, जो मौलिक होने के साथ प्रेरक भी है। रंगों की भाषा को बदलने पर ध्यान, जाप के समय शब्द को रंग में बदलना चाहिये। शब्द से रंग की ओर बढ़ने पर एकाग्रता होने लगेगी, एकाग्रता से ध्यान सधेगा। फिर ध्यान तप बन जाएगा और यह तप हमें आत्मोपलब्धि तक ले 1. वही पृ. 67