________________ (327) अमूढचेतना' जब चेतना असम्मोह की स्थिति में चली जीत है, तब उसमें मूढ़ता पैदा नहीं होती। निर्विकल्प चेतना के उपलब्ध होने पर चित्त मूढ नहीं बनता, सम्मोहन समाप्त हो जाते हैं। विवेक चेतना ___ सम्मोहन समाप्त होने पर विवेक चेतना जागृत हो जाती है। फलस्वरूप जड़चेतन में पार्थक्यशक्ति विकसित हो जाती है। आत्मा और पुद्गल के स्पष्ट भेद का उसे साक्षात् हो जाता है। उसे विवेक चेतना की उपलब्धि होती है। व्युतसर्गचेतना जब विवेक चेतना पुष्ट होती है, तब व्युत्सर्ग की क्षमता बढ़ती है। त्याग और विसर्जन की शक्ति का विकास होता है। मैं चैतन्यमय, सच्चिदानंदघन हूँ, यही मेरा अस्तित्त्व है। शनैः शनैः अभ्यास द्वारा चेतना का वह अनन्त सागर एक दिन निस्तरंग और उर्मिविहीन बन जाएगा। उस स्थिति में उसे परम सत्य का साक्षात्कार हो जाएगा। ___ शुक्ल लेश्या संयुक्त, शुक्लध्यान में आरोहित चेतना-कैवल्य का वरण करेगा ही। कर्म कालिमा का समूलोच्छेद हो जावेगा। अज्ञान जन्य चारों घाति कर्म भस्मीभूत होकर केवलज्ञान रूपी सूर्य का प्राक्ट्य हो जावेगा। अर्हत् पद प्राप्ति में इस श्वेत रंग का महत्त्वपूर्ण योगदान इस प्रकार स्वतः सिद्ध हो जाता है। सिद्ध पद-लालवर्ण दर्शनकेन्द्र में (मस्तक) रक्त (लाल) वर्ण के साथ सिद्ध पद का ध्यान किया जाता है। बाल सूर्य जैसा लाल वर्ण। यह लाल वर्ण आन्तरिक दृष्टि को जागृत करता है। आत्म साक्षात्कार अन्तर्दृष्टि का विकास, अतीन्द्रिय चेतना का विकास दर्शन केन्द्र के जागरण से होता है। मंत्र, लालवर्ण और दर्शनकेन्द्र-इन तीनों का समायोजन आंतरिक दृष्टि को जागृत करने का अनुपम साधन है। अन्तर्दृष्टि का अर्थ है प्रियता-अप्रियता की अनुभूति से मुक्ति। मुक्त होने पर ही सत्य उपलब्ध होता है। शास्त्रों का रटन या तत्त्वों के पारायण से इसकी उपलब्धि नहीं होती। 1. प्रेक्षा-ध्यान लेश्या ध्यान पृ. 71 2. वही 4. प्रेक्षाध्यान : लेश्याध्यान पृ. 54-55 3. वही