________________ (326) जागृत होता है। परिणामस्वरूप सर्वज्ञता, केवलज्ञान का अधिकारी बनाने में श्वेत वर्ण सहायक होता है। सत्त्वगुण और शुक्ल लेश्या का वर्ण भी श्वेत है। पूर्णिमा के चंद्र जैसा प्रकाशमान धवल रंग। शुक्ल लेश्या संयुक्त श्वेत वर्ण आत्म-जागृत्ति में अत्यन्त सहयोगी होता है। परम-पद प्राप्ति में प्रकाशमान श्वेत रंग किस प्रकार प्रगति करता है? वह भी हम अवलोकन करेंशुक्ल लेश्या' (प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 61)___ व्यवहार में श्वेतरंग को स्वच्छता, शुद्धता, पवित्रता का प्रतीक माना गया है। शुक्ल लेश्या का रंग भी पूर्णिमा के चंद्र जैसा श्वेत है। यह शांति, शुद्धि और निर्वाण का द्योतक है। पद्मलेश्या की गर्मी को शुक्ल-लेश्या उपशांत कर देती है और निर्वाण घटित हो जाता है। शुक्ललेश्या उत्तेजना, आवेग, आवेश, चिन्ता, तनाव, वासना, कषाय-क्रोध आदि को शांत कर पूर्ण शांति का अनुभव कराती है। आत्म साक्षात्कार उपशांत हुई चेतना, इंद्रिय चेतना, मनःस्थ चेतना और चित्त की चेतना से परे एक ऐसे तत्त्व का साक्षात्कार कराती है, जो परम इष्ट है। वह तत्त्व है-आत्म साक्षात्कार। आत्म साक्षात्कार ही लेश्या ध्यान का परम लक्ष्य है, जो कि शुक्ल लेश्या से प्राप्त होता है। इस केन्द्रबिंदु से ही हमें भौतिक और आध्यात्मिक जगत के अन्तर का ज्ञान होता है। अव्यथ चेतना' आत्म साक्षात्कार की महत्त्वपूर्ण प्रकिया है-निर्विकल्प चेनता का निर्माण। जब निर्विकल्प चेतना जागृत होती है, तब सारी असमाधियाँ दूर हो जाती है। इससे सबसे पहला सुफल होता है-अव्यथ चेतना की जागृति। निर्विकल्प चेतना में जीनेवाला व्यक्ति निर्व्यथ जीवन जीता है। उसकी चेतना में व्यथा नहीं होती। उसके सामने कितना ही प्रतिकूल वातावरण उपस्थित हो, भयंकर परिस्थितियाँ और समस्याएँ हो, वह कभी व्यथित नहीं होता। वह घटना को जान लेता है, भोगता नहीं। वह केवल ज्ञाता हो जाता है। भोक्ता भाव समाप्त हो जाता है। 1. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ.७० 2. वही