________________ (325) 4. उपाध्याय पद उपाध्याय का वर्ण हरा अथवा नीला (हरित-नील) है। कहीं इसे मरकतमणि के सदृश हरा, प्रियंगु के सदृश तो हरित-हरा/नीला कहा गया है। यहाँ हरा और नीला दोनों ही वर्ण उपाध्याय के मान्य किये गये है। नभ से उपमित यह पद आनन्द का केन्द्र है, जो कि व्यापकता को सूचित करता है। 5. साधुपद___ साधु का वर्ण काला (श्याम-कृष्ण) माना है। जिसे अंजनमणि' की उपमा दी गई है। कस्तूरी से उपमित यह शक्ति का केन्द्र है, जो कि एकाग्रता, अवशोषक का प्रतीक है। पंचपदों के वर्गों का विशेष विवेचन:अर्हत् पद-श्वेतवर्ण___ अर्हत् पद का ध्यान ज्ञानकेन्द्र (मस्तिष्क) पर श्वेत वर्ण के साथ करते हैं। श्वेत वर्ण हमारी आंतरिक शक्तियों को जागृत करता है। हमारे मस्तिष्क में ग्रे रंग, धूसर रंग का एक द्रव पदार्थ है। जो कि समूचे ज्ञान का संवाहक होता है। पृष्ठरज्जु में भी वह पदार्थ है। मस्तिष्क में अर्हत् का धूसर रंग के साथ श्वेतवर्ण से ध्यान करते हैं। इससे ज्ञान की सोयी हुई शक्तियाँ जागृत होती है। चेतना का जागरण होता है। इसीलिए इस पद की आराधना के साथ ज्ञानकेन्द्र और श्वेतवर्ण की समायोजना की गई है। मंत्रशास्त्र का भी यही अभिमत है कि स्वास्थ्य के लिए श्वेत वर्ण का ध्यान करना चाहिये। श्वेत वर्ण स्वास्थ्यप्रद होता है, स्वास्थ्य का प्रतीक होता है। रोग निवारण में श्वेतवर्ण पूर्णतः सहयोगी होता है। इस वर्ण की कमी से अस्वास्थ्य बढ़ता है। हमारे शरीर के रक्त कणों में श्वेत व लाल रक्त कण हैं। श्वेत रक्त कणों को डबल्यु. बी. सी. (White Blood Cars Ckals) कहा जाता है। यदि श्वेत कण कम हो जाएँ तो हम निश्चित रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं।' ____ यदि भावविभोर होकर श्वेतवर्ण के साथ अर्हत् पद के ध्यान में निमग्न हो जाते हैं, तो ज्ञानकेन्द्र सक्रिय होने लगता है और ऊर्जाशक्ति का निर्माण होता है। क्रोध, आवेश, आवेग, उत्तेजनाएँ आदि विकारों की शांति होती है। फलस्वरूप व्यक्ति परमशांति का अनुभव करता है। ज्ञानकेन्द्र की सक्रियता से ज्ञाता भाव 1. तीर्थंकर 1 पृ. 45 . 2. वही 3. वही 4. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 61