________________ (306) बुद्ध ने कहा "भिक्षुओं तीन शुचि भाव है, वह शरीर (काया) की शुचिता है। जो झूठ बोलने, चुगली खाने, व्यर्थ बोलने से विरत रहता है, वह वाणी की शुचिता है। जो निर्लोभी, अक्रोधी एवं सम्यगदृष्टि होता है, वह मन की शुचिता है। इस प्रकार बुद्ध ने यहाँ पर मन-वचन-काया की अप्रशस्त प्रवृत्ति को रोकने का निर्देश किया है।" वैदिक पररम्परा में समिति और गुप्ति जैन परम्परा में जिस प्रकार गमनागमन आदि में विवेक हेतु पंच समिति का विधान है, उसी भांति वैदिक परम्परा में भी इनका अर्थतः उल्लेख प्राप्त होता है। गमनागमन की क्रिया में सावधान करते हुए कहते हैं कि "संन्यासी को जीवों को कष्ट दिये बिना चलना चाहिये।"२ महाभारत के शान्तिपर्व में "त्रस-स्थावर दोनों प्रकार की हिंसा से रहित गमनागमन क्रिया करने का निर्देश दिया गया है।" भाषा समिति के सदृश मनु निर्देश करते हैं कि "मुनि को सदैव सत्य बोलना चाहिये। वाणी के विवेक का विवेचन महाभारत के शांतिपर्व में विस्तृत रूप से उपलब्ध होता है।" भिक्षावृत्ति के लिए भी पाँच प्रकार का विधान है, 1. मधुकर मधुमक्खी या भौरे के समान पाँच-सात घर से भिक्षा प्राप्ति 2. प्राक्प्रणीतशयन स्थान से उठने से पूर्व प्रार्थित भोजन 3. अयाचित-भिक्षाटन से पूर्व निमन्त्रित भोजन 4. तात्कालिक-पहुँचने पर ब्राह्मण भोजन करने की सूचना दे। 5. उपपन्नआश्रम या मठ में पका भोजना लाना। इसी के साथ यह भी उल्लेख है कि संन्यासी को भिक्षाटन के लिए गाँव में मात्र एकबार, वह भी तब, जब रसोईघर से धुंआ निकलना बन्द हो जाय, अग्नि बुझ जाये और बर्तन आदि अलग रख दिये जाये तब जाना चाहिये। ___ यह सावधानी पूर्वक विवेक जैन परम्परा से अतिनिकट है। समिति नाम से शब्द साम्य न होने पर भी अर्थ साम्य स्पष्टः झलकता है। मधुकरी-भिक्षावृत्ति आदि में तो शब्द समानता भी स्थापित है। निक्षेपण व प्रतिस्थापन समिति की वैदिक परम्परा में चर्चा नहीं है तो विरोध भी दृष्टिगत नहीं होता। इस प्रकार यह परम्परा भी समिति विचार को जैन परम्परा के सदृश स्थान देती ही है। 1. वही 3.118 2. मनुस्मृति 6.40 देखिए धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-1 3. महाभारतशांतिपर्व 9.11 4. मनु स्मृत्ति 6.46 5. महा शा. 109. 15-19 6. देखिए धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-१ पृ. 492 7. महा. शा. 9.21-24