________________ (305) ईर्यासमिति के सदृश विनयपिटक में निर्देश है कि "मुनि सावधानी पूर्वक मन्थर गति से गमन करे। गमन करते समय वरिष्ठ भिक्षुओं के आगे न चले।" भाषासमिति की भांति धम्मपद में कथन है कि "जो भिक्षु वाणी में संयत है, मितभाषी है, विनीत है, वही धर्म और अर्थ को प्रकाशित करता है। उसका भाषण मधुर होता है।"२ एषणा समिति के समान कहा गया है कि "रात्रि व्यतीत होने पर मुनि ग्राम में प्रवेश करे, वहाँ न तो किसी का निमन्त्रण स्वीकार करे और गाँव से कोई भोजन लाकर दे, उसे स्वीकार करे। सहसा एवं चुपचाप विचरण करे। भिक्षा के लिए संकेत न करे। यदि भिक्षा मिले या न मिले, अल्प मिले या बहुत मिले वह अवहेलना या तिरस्कार न करके मौन भाव से दाता से ग्रहण करके अविचलित रहकर वन में लौटे। " न असमय विचरण करे, असमय विचरण से आसक्ति उत्पन्न हो सकती है। ज्ञानी पुरुष असमय में विचरण नहीं करते। ____संयुक्तनिकाय में बुद्ध का कथन है कि "भिक्षुओं भिक्षु आने-जाने में सचेत रहता है, देखने-भालने में सचेत रहता है, पसारने-समेटने में सचेत रहता है, संघाटी, पात्र चीर को धारण करने में सचेत रहता है। पखाना-पेशाब करने में सचेत रहता है। जाते, खड़े होते, बैठते, सोते, जागते, कहते, चुप रहते सचेत रहता है। भिक्षुओं इस प्रकार भिक्षु सम्प्रज्ञ होता है।" ___इस उद्धरण में उपलक्षण से पाँचों ही समितियों का बयान किया गया है। समिति शब्द व्यवहृत न होने पर भी पाँचों समिति की विवेचन यहाँ दृष्टिगत होता है। इससे, उपर्युक्त कथन से यह कहा जा सकता है कि बुद्ध का ये दृष्टिकोण जैन परम्परा के सन्निकट है। बौद्ध परम्परा में गुप्ति ___ समिति के समान गुप्ति को भी महत्त्वपूर्ण स्थान जैन परम्परा की भांति बौद्ध परम्परा भी मान्य करती है। गुप्ति शब्द बुद्ध परम्परा में भी अभिप्रेत है। सुत्तनिपात में वहाँ गुप्ति शब्द ही प्रयुक्त हुआ है। जिस प्रकार त्रिदण्ड का उल्लेख जैन परम्परा में हुआ है", उसी प्रकार यहाँ तीन कर्म मान्य किये गये हैं। अंगुत्तर निकाय में इसे शुचिता शब्द से सम्बोधित किया गया है। 1. विनयपिटक 8.4.4 2. धम्मपद 363 3. सुत्तनिपात्त 37.32-35 4. वही 23.11 5. संयुक्तनिकाय 34.5.1.7 6. सुत्त निपात 4.3 7. स्थानांग 3.126 8. अंगुत्तरनिकाय 3.118