________________ (289) 1. विविक्त शय्यासन-ब्रह्मचारी का शयन व आसन स्त्री-पशु-नपुंसक से संसक्त न हो। 2. स्त्रीकथा परिहार-स्त्रियों के शृंगार, हाव-भाव, आदि कथाओं का परिहार करे अर्थात् त्याग करे। ___3. निषद्यानुपवेशन-स्त्री के साथ एकासन पर न बैठे, यहाँ तक कि उसके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठे। 4. स्त्री-अंगोपांग अदर्शन-स्त्रियों के अंग-उपांग की ओर दृष्टि तक न डाले, यदि दृष्टि चली भी जाए तो वहाँ से तुरन्त हटा ले। 5. कुड्यान्तर शब्द श्रवणाविवर्जन-दीवार आदि की आड़ से भी स्त्रियों के शब्द, गीत, रूप आदि न सुने, न देखे। ___6. पूर्वभोग स्मरण वर्जन-गृहस्थ जीवन में भोगे हुए भोगों का स्मरण न करे। 7. प्रणीत भोजन त्याग-विकारोत्पादक गरिष्ठ भोजन का त्याग करे। 8. अतिमात्र भोजन त्याग-रूक्ष भोजन भी प्रमाणोपेत किया जाये, अधिक मात्रा में न करे। 9. विभूषाविवर्जन-शरीर की विभूषा-सजावट का त्याग करें। __इन गुप्तियों को बाड़ भी कहा गया है। जिस प्रकार खेती की सुरक्षा के लिए खेत के चारों और बाड़ बांध दी जाती है, कि अन्य जीवों से खेती को नुकसान न हो। उसी भांति साधु जीवन की सुरक्षा हेतु इन नव बाड़ो का कथन किया गया है। ___ इस प्रकार जैन परम्परा में ब्रह्मचर्य व्रत को श्रेष्ठतम व्रत के रूप में स्वीकारा है। अब बौद्ध एवं ब्राह्मण परम्परा में भी इसका स्वरूप दर्शन करें। बौद्ध परम्परा में ब्रह्मचर्य ___ बौद्ध परम्परा में भी ब्रह्मचर्य की महिमा का गान एक स्वर से किया गया है। धम्मपद' में वर्णित है कि "अगरु और चन्दन की सुगंध अल्प है, पर शील की संगुध इतनी व्यापक है कि वह मानव लोक तो क्या देवलोक में भी व्याप्त है।" विसुद्धिमग्ग' में भी शील की सुगंध को अति व्यापक कहा है। 1. धम्मपद 4.12 2. विसुद्धिमग्ग परि. 1