________________ (296) 4. पंच महाव्रतों का तुलनात्मक अध्ययन जैन परंपरा साध के लिए पंचमहाव्रत + रात्रिभोजन परित्याग स्वरूप छः व्रतों का विधान करती है। उसी तरह अन्य परंपरायें भी इन व्रतों को स्थान देती है या नहीं, उस पर भी हम दृष्टिपात करें। जैन परंपरा के समकालीन है बौद्ध परंपरा। क्या, बौद्ध परंपरा में भी पंच महाव्रत मान्य किये गये हैं? वह भी हम देखें (क) बौद्ध परंपरा-में दश प्रकार के शील का विधान किया गया है-1. प्राणातिपात विरमण 2. अदत्तादान विरमण 3. अब्रह्मचर्य या कामेसु मिच्छाचार विरमण 4. मूसावाद (मृषावाद) विरमण 5. सुरामेरयमद्य (मादक द्रव्य) विरमण 6. विकाल भोजन विरमण 7. नृत्यगीतवादित्रविरमण 8. माल्यधारण, गन्ध विलेपन विरमण 9. उच्चशय्या, महाशय्या विरमण 10. जातरूप रजतग्रहण (स्वर्णरजतग्रहण) विरमण। इन दश शीलों में से जैन परंपरा छः शील अर्थात् पांच महाव्रत और छठा रात्रिभोजन के रूप में स्वीकार्य ही है। यद्यपि शेष चार शील को महाव्रत के रूप में स्वीकार न करने पर भी साधु के लिए अवश्यमेय त्याज्य कहा है। मद्यपान, माल्यधारण, गंध विलेपन, नृत्यगीत वाजित्र एवं उच्चशय्या ये साधु के लिए अवश्यमेव वर्जनीय है। वास्तव में देखा जाय तो पंच महाव्रत एवं भिक्षुशील में बाह्य शाब्दिक समानता तो है ही, साथ ही दोनों की मूलभूत भावना प्रायः समान है। बौद्ध परंपरा में भी इनका खूब गहराई से चिन्तन किया है। (ख) ब्राह्मण परंपरा में पंच यम (महाव्रत) जिस प्रकार जैन परंपरा साधु के पंचमहाव्रत व रात्रिभोजन परित्याग व्रत का विधान करती है, उसी प्रकार ब्राह्मण (वैदिक) परंपरा पंच यम को स्वीकार करती है। पातंजल योग सूत्र में पंच यम मान्य किये हैं-1. अहिंसा 2. सत्य 3. अस्तेय 4. ब्रह्मचर्य और 5. अपरिग्रह। इनको महाव्रत भी कहा गया है। जो जाति, देश, काल और समय की सीमा से रहित है। तथा सभी अवस्थाओं में, निरपेक्ष रूप से पालन करने योग्य हैं, वे महाव्रत कहे गये हैं। महाभारत में वेदव्यास ने भी निष्कामयोगी के लिए इन पंच यमों का सेवन आवश्यक बताया है। अहिंसा महाव्रत-वैदिक परंपरा में संयासी को त्रस एवं स्थावर दोनों प्रकार की हिंसा निषिद्ध है। 1. विनयपिटक महावग्ग 1.56 3. महाभारत शांतिपर्व 9.19 2. पांतजल योग सूत्र-साधनपा 32 4. वही