________________ (298) परंपरागत ब्रह्मचर्य की नव वाड से साम्यलिए हुए है। इस प्रकार पंच महाव्रतों में साम्य तथा वैषम्य है। 6. महाव्रतों के सरंक्षण की व्यवस्था स्वरूप : अष्ट प्रवचन माता जैन परंपरा में महाव्रतों की सुरक्षा, विशुद्धता एवं उनकी परिपुष्टता के लिए अष्ट प्रवचन माता का विधान किया गया है। प्रवचन माता किसे कहा जाय? उत्तराध्ययन सूत्र में समिति और गुप्ति' को 'प्रवचनमाता' शब्द से अभिहित किया गया है। इन प्रवचन माता में संपूर्ण द्वादशांगी समाविष्ट है। द्वादशांगी में ज्ञानदर्शन चारित्र का विस्तृत विवेचन है, इनको प्रवचन कहा गया है। माता अपने बालक का रक्षण-पोषण करती है, उसे संस्कारित करती है, उसी प्रकार प्रवचनमाता ज्ञान-दर्शन-चारित्र का रक्षण, पोषण करके चारित्र पालन में साधु को संस्कारित करती है। आत्मा के अनन्त गुणों को विकसित कराने वाली, उसका आधान करानेवाली यह प्रवचन माता है। समिति : परिभाषा__ प्रतिक्रमण सूत्र के वृत्तिकार आचार्य नेमि ने समिति की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है कि "प्रशस्त एकाग्रतापूर्वक की जाने वाली आगमोक्त सम्यक् प्रवृत्ति समिति कहलाती है"। इस प्रकार चारित्र की जो सम्यक् प्रवृत्ति है। ये समितियाँ आचरण की प्रवृत्ति के लिए है। शरीरधारण करने के लिए अथवा संयम यात्रा का निर्वहण करने के लिए साधु जो क्रियाएँ संपादित करता है, वह समिति है। समिति : प्रकार समितियाँ पांच है-1. ईर्या 2. भाषा 3. एषणा 4. आदानभण्ड निक्षेपणा 5. उच्चारादि प्रतिस्थापन। इन पांचों समितियों के साथ तीन गुप्ति-1. मन 2. वचन और 3. काया को भी समिति से अभिप्रेत किया गया है। टीकाकार ने इसके रहस्य को उद्घाटित करते हुए कहा कि गप्तियाँ केवल निवृत्यात्मक ही नहीं होती, प्रवृत्यात्मक भी होती है। इसी दृष्टि से इनको समिति भी कहा गया है। जो समिति होता है वह नियमत: गुप्त होता ही है और जो गुप्त होता है वह समित होता भी है और नहीं भी होता। मूलाराधना में आचार्य शिवार्य का कथन है कि 1. उत्तराध्ययन 24.1 3. प्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति) 5. वही 7. उत्तरा. बृहद्वृत्ति पृ. 514 2. वही 24.3 4. उत्तराध्ययन 24.26 6. उत्तराध्ययन 24.2