________________ (293) 3. शौचोपधि-शरीर-शुद्धि के लिए जल ग्रहण करने का पात्र-कमण्डलु'। वस्त्रादि दिगम्बर मुनि के लिए निषेध है। श्वेताम्बर परम्परा में आगमों में चार प्रकार की वस्तुएँ रखने का उल्लेख है1. वस्त्र 2. पात्र 3, कम्बल 4. रजोहरण प्रश्नव्याकरण सूत्र में साधु के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का विधान है। 1. पात्र-लकड़ी-मिट्टी या तुम्बे का, 2. पात्रबंध-पात्र बांधने का कपड़ा 3. पात्र स्थापना-पात्र रखने का कपडा, 4. पात्र केसरिका-पात्र पोंछने का कपड़ा, 5. पटल-पात्र ढंकने का कपड़ा 6, रजस्त्राण 7. गुच्छक 8-10 प्रच्छादक ओढ़ने की चादर (मुनि विभिन्न नापों की 3 चादरें रख सकता है। 11. रजोहरण 12. मुखवस्त्रिका 13. मात्रक 14. चोलपट्ट। इन चौदह वस्तुओं का परिग्रह मुनि कर सकता है। वास्तव में इन आवश्यक सामग्रियों का विधान संयम-रक्षा हेतु किया गया है। अतः ये धर्मोपकरण कहे जाते हैं। संयमयात्रा के सुखपूर्वक निर्वहण हेतु मुनि इनको ग्रहण करे किन्तु इन पर ममत्व न रखे। अपवाद रूप में सेवाभाव के लिए, रोगनिवारण के लिए अन्य वस्तु को रखने का भी विधान किया गया है। बाह्य परिग्रह के अन्तर्गत आचार्य हरिभद्र ने नौ भेदों का, तथा बृहत्कल्पभाष्य में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने दस भेदों का निरूपण किया है-1. क्षेत्र-खुली भूमि 2. वास्तु-भवनादि 3. हिरण्य-चांदी 4. स्वर्ण-सोना 5. धन-सम्पति 6. धान्य 7. द्विपद-दास-दासी 8. चतुष्पद-पशु आदि 9. कुप्य-गृह संबंधित सामान। जिनभद्र ने दस प्रकार वर्णित किये है-क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, संचय (तृण-काष्ट आदि), मित्रज्ञातिसंयोग (परिवार), यान (वाहन), शयनासन (पलंग-पीठ आदि) दास-दासी, और कुप्य। साधु को इन सब परिग्रह से विरत होना चाहिए। अपरिग्रह महाव्रत की पांच भावनाएँ-1. श्रोतेन्द्रिय संवर भावा 2. चक्षुरिन्द्रिय संवर रूप भावना 3. घ्राणेन्द्रिय 1. मूलाचार 1.14 2. आचारांग 1.2.5.90 3. प्रश्न-१०, बोलसंग्रह भाग-५ पृ. 28-29 4. श्रमणसूत्र पृ. 50, आव. हारिभद्रीयावृत्ति अ.५ 5. बृहत्कल्प भा. 825