________________ (281) तत्त्वों का त्याग करता है। ये बाधक तत्त्व हैं___ 1. अलीक वचन जो बात नहीं है उसे कहना, स्वयं की प्रशंसा करने के लिए और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए झूठ बोलना। 2. पिशुन वचन अथवा चुगली-नारद की भांति एक दूसरे को लड़ाना। चुगली करना आदि। ___3-4. कठोर वचन तथा कटु वचन-ये दोनों भी सत्य के शत्रु हैं। हितकारी बात को भी कठोर-कटु शब्दों में नहीं कहना, बल्कि मधुर शब्दों का प्रयोग करना। 5. चपल वचन-बहुत की उतावल, जल्दी में बिना सोचे समझे बोलना। इस प्रकार साधु को इन बाधक तत्त्वों से बचना चाहिये। टीकाकारों ने अनुवीचि भाषण का अर्थ चिन्तनपूर्वक बोलना किया है। प्रस्तुत भाषण में भाषा व उसके गुण दोषों पर चिन्तन करके सत्य के प्रति मन में दृढ़ता रखी जाती है। 2. क्रोध निग्रह रूप क्षमा भावना ___ असत्य भाषा का प्रथम कारण क्रोध है। क्रोधावेश में विवेक नाश हो जाता है। उसे भान नहीं रहता है कि मैं किसके सामने क्या बोल रहा हूँ। इसलिए इस भावना में क्रोध से बचकर क्षमा धारण की जाती है। इस भावना का उद्देश्य ही यही है कि आत्मा को क्षमा गुण से भावित करना। 3. लोभ विजयरूप निर्लोभ भावना ___ क्रोध की भांति लोभ भी असत्य का संहार करने वाला है। लोभ के कारण भी मनुष्य असत्य संभाषण करता है। संसार में आसक्ति एवं ममत्व लोभ के ही परिणाम है। सत्य का अन्वेषक साधक निर्लोभ भावना के चिन्तन के आश्रय से लोभ वृत्ति को समाप्त करने का प्रयास करता है। साधु को लोभ का त्याग करके बोलना चाहिये क्योंकि लोभ के वशीभूत होकर भी असत्य बोला जाता है। 4. भयमुक्तियुक्त अभय भावना ___ जब भय का संचार होता है, तब व्यक्ति की बुद्धि कुंठित हो जाती है, उसमें करणीय अथवा अकरणीय का यथातथ्य निर्णय करने की क्षमता नहीं रहती। भयभीत व्यक्ति सत्य नहीं बोल पाता। साधु को भय के दुष्परिणामों का चिन्तन करके अभय बनने का प्रयास करना चाहिए। साधु भयमुक्ति के लिए अभय भावना से आत्मा को भावित कर सत्य के चिन्तन को सुदृढ़ करता है।