________________ (148) इस प्रकार तत्त्वज्ञान से दोष, प्रवृत्ति, जन्म और दुःख दूर होकर मोक्ष प्राप्त हो जाता है। परन्तु यह तत्त्वज्ञान कैसे प्राप्त होता है? इसका समाधान न्यायसूत्रकार गौतम कहते हैं कि "तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति समाधि विशेष से होती है। योग साधना से आत्मा में तत्त्वज्ञान की योग्यता आती है। इसीलिये महर्षि कणाद ने कहा है "धर्म ही निःश्रेयस (मोक्ष) का उपाय है। यहाँ धर्म से तात्पर्य है-श्रद्धा, अहिंसा, भूतहितत्व, सत्य, अस्तेय, भावशुद्धि, क्रोधवर्जन, अभिषेचन, शुचिद्रव्य सेवन, देवताभक्ति, तप और अप्रमाद। इस प्रकार धर्म तत्त्वज्ञान को उत्पन्न करके, उसके द्वारा मोक्ष का उपाय या हेतु बनता है। नैयायिक भासर्वज्ञ न्यायवैशेषिक की इस प्रचलित मान्यता से भिन्न मत धारण करते हैं-उनके अनुसार परमात्मा महेश्वर शिव के दर्शन ही मोक्ष का कारण है। __ मुक्तावस्था में उनका स्वरूप कैसा है? उसका विशेष विवेचन यहाँ नहीं दर्शाया गया है। परामुक्ति अथवा निर्वाण आत्मा का होता है, यहाँ तक की सीमा दी गई है। किन्तु जिस प्रकार जैन परम्परा मान्य सिद्ध, सिद्धिगति, उनके प्रकार आदि का वर्णन जिस गहराई से व सूक्ष्मता से किया है, उतना स्पष्टतः वर्णन का अभाव दिखाई देता है। फिर भी मोक्ष का स्वरूप कथन व उसके कारणों का निर्देश यहाँ भली भांति युक्ति देकर किया गया है। मिथ्याज्ञान से संसार एवं तत्त्वज्ञान से कर्मक्षय होकर मोक्ष की प्राप्ति होना-यह जैन मत से साम्यता रखता है। (ई) सांख्य-योग-दर्शन में मुक्ति ___ न्याय दर्शन की भांति सांख्य दर्शन भी दुःखत्रय की अत्यन्त निवृत्ति को मुक्ति स्वीकार करते हैं। आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक रूप इन दुःखत्रय की आत्यन्तिक निवृत्ति होना। अर्थात् दुःख के आविर्भाव की जिसमें कभी शक्यता न हो ऐसी निःशेष निवृत्ति। यह दुःख की निवृत्ति ही परमपुरुषार्थ मोक्ष है। योगसूत्रकार महर्षि पतंजलि भी यही स्वीकारते हैं। 1. न्याय सूत्र 1.1.2 2. न्याय सूत्र 4.2.38 ३.वै. सू. 1.1.2. 4. प्रशस्तपाद भाष्य, धर्मप्रकरण 5. वै. सू. 1.1.4 6. न्याय सार पृ.५९० 7. सां. सू. 1.1 8. यो. सू. 2.16.