________________ (152) इस प्रकार योग दर्शन में मोक्षावस्था की प्रक्रिया का वर्णन किया है। मुक्ति किस प्रकार वरण की जाती सकती है। उसका विधान है किन्तु (विदेहमुक्ति के विषय में प्रकाश नहीं डाला गया है। (3) बौद्ध मत में निर्वाण बौद्ध परम्परा में निर्वाण को सर्वोच्च अवस्था के रूप में स्वीकार किया गया है। एवं प्रत्येक व्यक्ति इसे प्राप्त कर सकता है। निर्वाण को विमुक्ति भी कहा है, जिसका अर्थ है विकार भावों तथा इच्छाओं से निवृत्ति। भगवान् गौतम बुद्ध ने दुःख निवृत्ति स्वरूप निर्वाण कहा है। उनका कथन है-ओ भिक्षु ! यह दुःख निरोध सत्य है-अवशिष्ट तृष्णा की समाप्ति, मुक्ति और अनासक्ति। बुद्ध की त्रिसूत्री शिक्षा भी यही है-सब अनित्य है, सब कुछ निःसार है तथा केवल निर्वाण में ही शांति है। निर्वाण का शाब्दिक अर्थ है उच्छेद, निर्गमन, परिशमन अथवा पूर्ण विनाश। निर्वाण और तथागत इन दोनों का ही तात्पर्य है-पूर्ण आध्यात्मिक मुक्ति एवं सभी प्रकार की आसक्तियों, विकारभावों और अज्ञानता की परिसमाप्ति। यहाँ निर्वाण शब्द का प्रयोग अग्नि या लेम्प जलने के सन्दर्भ में उच्छेद अर्थ को लेकर हुआ है / वास्तव में जब भगवान् बुद्ध से पूछा जाता था कि निर्वाण क्या है? तब उस समय वे स्वयं मौन हो जाते थे। किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि निर्वाण की सत्ता नहीं। क्योंकि धम्मपद में इसका स्पष्ट संकेत मिलता है कि-ज्ञान के बिना ध्यान और ध्यान के बिना ज्ञान हो सकता। ज्ञान और ध्यान से यो युक्त है, वह निर्वाण के समीप हो जाता है। इस प्रकार यह परम सुख और शान्ति की अवस्था है। उदान में निर्वाण की अवस्था को निषेधात्मक ढंग से व्यक्त करते हुए कहा है कि यह एक ऐसी अवस्था है जहाँ न पृथ्वी है, न पानी है, न अग्नि, न हवा, न आकाश की अनन्तता है। यह न चेतना की, न अचेतना की अवस्था है, न यह संसार है न दूसरा, न सूर्य है न चन्द्रमा, न वहाँ आगमन है, न गमन / न अवस्थित है न उत्पत्ति / वह बिना किसी आधार के है। यही वस्तुतः दुःखक्षय की अवस्था 1. संयुक्त निकाय 5, 420 2. सर्वमनित्यं, सर्वमनात्म, निर्वाणं शान्तम् 3. धम्मपद गा. 372