________________ (167) 3. पूर्णेन्द्रिय-बधिर, अंधत्व दोष से रहित होना। 4. दृढ़ संघयणी-तप विहारादि संयम के साथ ही उपकार के कार्य में थके नहीं, ऐसे दृढ़ संघयण के धारक होते है। यह शरीर सम्पदा है। 4 वचन सम्पदा वाक्चातुर्ययुक्त होना उनके वचनों में एक प्रकार की चुंबकीय शक्ति होती है, जो दूसरों को आकर्षित कर लेती है। उनके वचन रागद्वेषरहित-सुस्पष्ट होते हैं। इसके भी चार प्रकार हैं 1. प्रशस्तवचनी-कोई भी उनके वचनों का खण्डन न कर सके। वचनों को सुनकर परवादी भी सानंदाश्चर्य प्राप्त करें। 2. मधुरता-कोमल, मधुर, गांभीर्ययुक्त सुस्वर से बोलें। 3. अनाश्रित-पक्षपातरहित, कलुषितता रहित होवें। 4. स्फुटता-गणगणाहट आदि दोष से रहित, स्पष्ट उच्चारण युक्त। इस प्रकार की वचन सम्पदा के धारक आचार्य होते हैं। 5 वांचन सम्पदा आचार्य शास्त्रवांचन में कुशल होते हैं। उसके भी चार प्रकार हैं 1. जोगो-शिष्य की योग्यता को जानकर, योग्य शिष्य को ग्रहण कर सके उतना ज्ञान देते हैं। अपात्र को ज्ञान नहीं देते। 2. प्रणीत-शिष्य की रूचि, धारणा शक्ति के अनुसार ज्ञान देते हैं। 3. निरयापयिता-योग्य शिष्य को अन्य कार्यों से निवृत्त करके, सम्प्रदाय कार्य को निर्वाह करने वाले एवं शासन प्रभावना करने वाले साधुकों विशेष रूप से सूत्र का वांचन कराते हैं। 4. निर्वाहणा-पानी में तेल बिन्दु के सदृश ज्ञान परिणमे उस प्रकार थोड़े शब्दों, अर्थ-बहुत्व सरल रीति से वांचना देते हैं। इस प्रकार आचार्य सूत्र और अर्थ की वांचना शिष्य की योग्यता को देखकर देते है। 1. दशा 4.4 २.दशा. 4.5 3. वही 4.6