________________ (212) अध्ययन है। इसके कर्ता चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के समकालीन श्रुतस्थविर हैं। ये श्रुतस्थविर गणधर ही हैं या अन्य, यह विवादास्पद विषय रहा है। 2. उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन) इस आगम के उत्तरज्झ और उत्तराध्याय इस प्रकार अनुक्रम से प्राकृत और संस्कृत नामांतर हैं। मुख्यतः पद्यात्मक रचित यह आगम 2000 श्लोक प्रमाण है। 36 अध्ययनों में विभक्त है। यह अनुश्रुति है कि भगवान महावीर ने निर्वाण समय में सोलप्रहर देशना दी थी, उस समय ये 36 अध्ययन उच्चरित किये थे। 3. दसवेयालिय (दशवैकालिक) 'दसकालिय' इस प्रकार के नामांतर वाले एवं 835 श्लोक प्रमाण स्वरूप वाले इस आगम में 10 अध्ययन हैं। पाँचवें अध्ययन के 2 एवं नवम अध्ययन के चार उद्देशक हैं। इस आगम की संकलना महावीर भगवान के चतुर्थ पट्टधर आचार्य शय्यंभव सूरी ने की है। अपने बालदीक्षित पुत्र मनक के लिए इसकी रचना वीर संवत् 72 अर्थात् 455 ई. पू. विकाल के समय की गई थी। चौदह पूर्वी में से उद्धत करके, मतांतरे गणिपिटक में से निर्वृहण करके इसकी रचना की गई 4. ओहनिज्जुत्ति (ओघनियुक्ति) 'चरणकरण' अनुयोग के निरूपण रूप इस आगम की 811 पद्य की 1355 श्लोक मय रचना है। इसे आवस्सय-निज्जुत्ति की 665 वीं गाथा की प्रशाखा मानी गई है। इस आगम के कर्ता श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी है। इसका निर्वृहण प्रत्याख्यान प्रवाद नामक पूर्व में से किया गया है। इस प्रकार यह मौलिक ग्रन्थ नहीं अपुित विशिष्ट प्रकार की संकलना है। 5. पिण्डनिज्जुत्ति (पिण्डनियुक्ति) दसवेयालिय के 'पिण्डेसणा' (पिण्डेषणा) नामक पंचम अध्ययन पर नियुक्ति रचते समय यह विस्तृत हो जाने से इसकी पृथक् आगम में गणना होने लगी। इस प्रकार यह दसवेयालिय नियुक्ति की प्रशाखा है। इसमें 671 गाथाएँ है, जिसका प्रमाण 835 श्लोक तुल्य है। इसके कर्ता श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी है। इस प्रकार मूलसूत्रों में प्रथम चार सूत्रों का प्रमाण 130 + 2000 + 835 + 835 + = 3800 श्लोक होता है।