________________ (236) . पाँच = 21 / इन 21 दोषों का त्याग 21 गुण हैं। ये उपरोक्त 21 गुण x अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार ये चार x पृथ्वी आदि 100 जीव समास x 10 शील. विराधना x 10 आलोचना के दोष x 10 धर्म 84000,00 उत्तर गुण होते हैं।' (ग) योग संग्रह - योग अर्थात् मन, वचन और काया। इन तीनों प्रकार के योगों का संग्रह 32 प्रकार का है। इन बत्तीस प्रकार के संग्रह से योगाभ्यास अच्छी तरह हो पाता है। ये 32 कार्यों को योगियों के हृदयकोश में संग्रह योग्य होने से इनको योगसंग्रह कहा गया है। ये 32 निम्न है___ 1. दोष लगने पर तुरन्त गुरु से निवेदन करे। 2. शिष्य का अपराध गुरु अन्य से प्रकाशित न करे। 3. कष्ट पड़ने पर भी धर्म में दृढ़ रहे। 4. तपस्या करके इस लोक में यश-महिमा की, सुख की इच्छा न करे तथा परलोक में देवपद आदि की वांछा न करे। 5. आसेवना' (ज्ञानाभ्यास संबंधी), ग्रहणा' (आचार-गोचरी संबंधी), 'शिक्षा' (सीख) कोई कहे तो उसे हितकारी माने। 6. शरीर की शोभा, विभूषा न करे। 7. गुप्त तप करे (गृहस्थ को पता न चले कि साधु के तप है), लोभ न करे। 8. जिन-जिन कुलों में भिक्षा लाने का श्री वीर प्रभु ने फरमाया है, उन सब कुलों में भिक्षाटन के लिए जाये। 9. परीषह आने पर चढ़ते परिणामों से सहन करे परन्तु क्रोध न करे। 10. सदा सरलता से अर्थात् निष्कपटता से विचरण करे। 11. संयम (आत्मदमन) करे। 12. समकित सहित अर्थात् शुद्ध श्रद्धायुक्त रहे। 13. चित्त को स्थिर करे। 14. ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार इन पाँचों आचारों में प्रवर्ते। 1. द्रव्य पाहुड टी. 9.8.18. 2. समवायांग सूत्र : 32