________________ (239) 19. नालिका-ताश, चौपड़, शतरंज आदि खेले। 20. छत्र-छतरी धारण करे, छत्र धरे। 21. तिगिच्छ-बिना कारण बल-वृद्धि के लिए औषध सेवन करे। 22. वाहनी-जूते, चप्पल, मोजडी आदि पैरों में पहने। 23. जोत्यारंभ-दीपक, चूला आदि अग्नि का आरम्भ करे। 24.शय्यातरपिंड-जिसकी आज्ञा लेकर या जिसके मकान में निवास किया, उसके यहाँ का आहार-पानी आदि ले। 25. आसंदी-कुर्सी, खाट, पलंग आदि पर बैठे। 26. गृहांतरशय्या-वृद्धावस्था, रोग या तपश्चर्यादि में कारण बिना गृहस्थ के यहाँ बैठे। 27. गात्रमर्दन-पीठी आदि शरीर पर लगाए। 28. गृही वेयावृत्य-गृहस्थ का वैयावृत्य करे या उनसे करावे। 29. तप्तनिवृत्त-जिस बर्तन में पानी गर्म किया हो, वह बर्तन ऊपर, नीचे या मध्य में गर्म न हुआ हो वह पानी ले। 30. आतुरशरण-रोग, दुःख, कष्ट आदि से घबरा कर कुटुम्बियों का शरण ले। 31. जात्याजीवी-जाति, संबंध आदि बताकर आहार आदि ले। 32-45. मूल, अदरक, इक्षुखंड, सूरणादि, कंद-मूल, जड़ी, फल, बीज, सैंधव, अगर का नमक, नमक, रोमदेश का नमक, समुद्रीय नमक, पांशुक्षार, कालानमक, ये चौदह वस्तु सचित्त ग्रहण करे। . 46. धुवणे-वस्त्रादि को संगुधी द्रव्यों का धूप खेवे। 47. वमन-बिना कारण वमन करे। 48. वसति-बस्तीकर्म करे (गुदा द्वारा पानी या दवा प्रक्षेप करके मलोत्सर्ग करे) (एनिमा ले)। 49. विरेचन-बिना कारण जुलाब ले। 50. अंजन-शोभा के लिए आँखों में काजल, सुरमा आदि अंजन करे।