________________ (238) निषेधात्मक गुण(अ) 52 अनाचरण विशुद्ध संयम पालन हेतु साधु को दशवैकालिक सूत्र में निर्दिष्ट निम्न बावन अनाचरणों का त्याग करना चाहिए 1. उद्देशक-आहार, वस्त्र, पात्र, स्थानक आदि साधु के निमित्त बनाया हो, उसका उपभोग करना अनाचरण है। 2. कृतगड-साधु के लिए कोई भी वस्तु खरीद कर लाई गई हो। 3. नित्यपिंड-एक घर से नित्य आहार ग्रहण करें। 4. अभ्यहृत-साधु के सन्मुख लाकर आहार दे। 5. रात्रिभक्त-अन्न, पानी, मिष्ठान्न, मुखवास आदि रात्रि को ग्रहण करना। 6. स्नान-स्नान न करना। देश व सर्वस्नान का त्याग करना। देश स्नान अर्थात् हाथ-पैर आदि धोना। सर्वस्नान अर्थात् पूरे शरीर से स्नान करना। 7. गंध-चंदन, इत्र, आदि सुंगधित पदार्थों का बिना कारण विलेपन करना। 8. माल्य-पुष्प, मणि, मोती आदि की माला धारण करना। 9. वीयन-पंखा, पुट्ठा या वस्त्र आदि से हवा करना। 10. स्निग्ध-घृत, तैल, गुड़ आदि का संचय करना। 11. गिहिभत्त-गृहस्थ के पात्र थाली, कटोरा आदि में भोजन करना। 12. रायपिंड-चक्रवर्ति आदि राजाओं के लिए बनाया हुआ बलिष्ठ आहार का भोजन अथवा राजा के गृह का भोजन करना। 13. कमिच्छिक-दानशाला, सदाव्रत आदि स्थलों से आहार ग्रहण करना। 14. संबाहन-बिना कारण शरीर पर तैल आदि की मालिश करे। 15. दंतधावन-राख, मंजन आदि से दाँतों की शोभा करे। 16. संप्रश्न-गृहस्थ या असंयति को सुखशाता पूछे। 17. देह प्रलोयन-काँच, पानी आदि में अपना चेहरा देखे। 18. अष्टापद- अष्टांग निमित्त प्रकाशित करे। 1. दशवैकालिक सूत्र-अध्य. 3