________________ . (263) इस प्रकार जिनकी मोह और कषाय की ग्रन्थियाँ क्षीण हो जाती हैं, वे निर्ग्रन्थ कहलाते हैं। सर्वज्ञता न होने पर भी जिसमें रागद्वेष का अत्यान्त अभाव हो और अन्तर्मुहूत के बाद ही सर्वज्ञता प्रगट होने वली हो। 5. स्नातक जिनके चार घाती कर्म क्षय हो जाते हैं, सर्वज्ञता प्रकट हो जाती है, वे स्नातक हैं। स्नातक पाँच प्रकार के होते हैं। 1. अच्छवी-काय योग का निरोध करने वाला। 2. अशबल-निरतिचार साधुत्व का पालन करने वाला। 3. अकर्मांश-घात्यकर्मों का पूर्णतः क्षय करने वाला। 4. संशुद्धज्ञानदर्शनधारी-अर्हत्, जिन, केवली 5. अपरिश्रावी-सम्पूर्ण काय योग का निरोध करने वाला साधु के इन पाँचों में से प्रथम तीन प्रकार के साधु वास्तविक साधु जीवन से निम्न श्रेणी के साधक है। अन्तिम दो उच्चकोटि के साधु हैं। वैदिक परम्परागत साधु के प्रकार जैन परम्परा में जिस प्रकार साधु के पाँच प्रकारों का विधान किया गया है, उसी प्रकार वैदिक परम्परा में भी संन्यासियों के प्रकार वर्णित किये हैं। महाभारत में 4 प्रकार के संन्यासी वर्णित किये गये हैं। ___ 1. कुटीचक 2. बहुदक 3. हंस 4. परमहंस 1. कुटीचक-कुटीचक संयासी अपने गृह में ही संन्यास धारण करता है तथा अपने पुत्रों द्वारा निर्मित कुटिया में रहकर, उनकी भिक्षा ग्रहण करके साधना करता __2. बहूदक-वे संन्यासी त्रिदण्ड, कमण्डलु एवं कषायवस्त्रों से युक्त होते हैं एवं सात ब्राह्मण घरों से भी भिक्षा लाकर जीवन यापन करते हैं। . 3. हंस-हंस संन्यासी ग्राम में एक रात्रि तथा नगर में पाँच रात्रि निर्गमन करते हुए उपवास, चन्द्रायण आदि व्रत करते हैं। 1. वही. 5.189 2. महाभारत अनुपर्व 141-189