________________ .. (225) 6. सदाचारे', पारमार्थिकयतौ', ब्रह्मचर्यादिणान्विते अर्थात् सदाचार में रत, परमार्थ में तत्पर, ब्रह्मचर्यादि गुणों से युक्त होने से साधु कहते हैं। भगवती सूत्र में साधु पद को नमस्कार सर्व विशेषण ते समन्वित होकर किया गया है, जिसका तात्पर्य है 1. सर्व ग्रहण च सर्वेषां गुणवतामविशेषनमनीयताप्रतिपादनार्थम्, सर्व गुणवान् पुरुष भेदभाव बिना नमस्कार करने योग्य होने से यहाँ सर्व का ग्रहण किया गया है। ___2. अथवा सर्वेभ्यो जीवेभ्यो हिताः सार्वस्ते च साधव:-'सार्व' अर्थात् सर्व जीवों का हित करने वाले साधु वे सार्व साधु हैं। 3. सार्वस्य वा-अर्हतो न तु बुद्धादेः साधवः सार्वसाधवः अर्थात् बुद्ध आदि के नहीं परन्तु 'सार्व' अर्थात् अरिहंत के जो साधु वह सार्व साधु है। ___4. अथवा सर्वान् वा शुभयोगान् साधयन्ति-कुर्वन्ति-अथवा सर्व शुभ योग को साधे वह सर्व साधु है। ____5. अथवा सार्वान् वा-अर्हतः साधयन्ति तदाज्ञाकरणादाराधयन्ति प्रतिष्ठापयन्ति वा दुर्नयनिराकरणादिति सर्वसाधवः सार्वसाधवो वा आज्ञ का पालन करके सार्व अर्थात् अर्हत् को जो आराधते है किंवा दुर्नय को दूर करके (अन्य मतों का खंडन करके) जिनेश्वर भगवान के मत को प्रतिष्ठित करते हैं, वह सार्वसाधु हैं। 6. अथवा श्रव्येषु-श्रवणार्हेषु वाक्येषु-श्रव्य अर्थात् श्रवण करने योग्य वाक्यों में निपुण वे श्रव्यसाधु हैं। अथवा सव्यानि-दक्षिणान्यनुकूलानि यानि कार्याणि तेषु साधवः निपुणाः श्रव्यसाधवः सव्यसाधवो वा-सव्य अर्थात् अनुकूल कार्यों में निपुण वह सव्य साधु है। - आवश्यक नियुक्ति में यहाँ तक कहा गया है कि असहाय ऐसे को संयम पालन में सहायक होने से साधु हैं। विषय सुख से दूर रहने वाले, निर्मल चारित्र रूपी नियम वाले, तथ्य गुणों को साधने वाले, आत्मकार्य में उद्यमशील साधु हैं। परमार्थ साधन की प्रवृत्ति में जगत् जब असहाय हो जाता है, तब सहाय रहित ऐसे मुझे संयम रखने में जो मदद करते हैं, वे साधु हैं।" 1. सूत्र 1.3.1 3. ठाणं 10.3 5. आव. नि. 127 7. वही 127 २.पं. व४द्वार 4. भग. 1.1 6. वही 126