________________ (215) महानिसीह, कप्प और व्यवहार में से किया गया है। अतः इसका समय वीर संवत् 170 के पश्चात् है। 175 श्लोक प्रमाण यह कृति अज्ञातकर्तृक है। (7) भत्तपरिण्णा (भक्तपरिज्ञा) 172 पद्यों में रचित इसके कर्ता वीरभद्र हैं। इसका प्रमाण 215 श्लोक है। (8) मरणसमाहि (मरणसमाधि) इस प्रकीर्णक को मरणविभत्ति (मरणविभक्ति), मरणविहि (मरणविधि), मरणविहिसंगह (मरणविधि संग्रह) तथा मरणसमायारी (मरणसमाचारी) भी कहते हैं। 83 श्लोक प्रमाण यह प्रकीर्णक दस प्रकीर्णकों में, सबसे विस्तृत है। इसकी रचना आठ श्रुतों के आधर पर हुई हैं- 1. आउरपच्चक्खाण, 2. आराहणा (पइण्णग), 3. भत्तपरिण्णा 4. मरणविभत्ति 5. मरणविसोहि 6. मरणसमाहि 7. महापच्चक्खाण 8. संलेहणासुय। यह भी अज्ञातकर्तृक है। (9) संथारग (संस्तारक) 123 पद्यों में गुंफित और 155 श्लोक प्रमाणित यह अज्ञातकर्तृक कृति है। इसमें अन्तकाल की आराधना रूप संस्तारक की महिमा वर्णित है। (10) चउसरण (चतुःशरण) 63 पद्यों में रचित इस कृति को 'कुसला-णुबंधिअज्झयण(कुसलानुबंध्यध्ययन) भी कहते है। इसके कर्ता वीरभद्र है।' इस प्रकार इन दस प्रकीर्णकों में से 6 तो समाधिमरण से संबंधित है। वैसे प्रकीर्णकों की संख्या तो अधिक है परन्तु 45 आगमों में इन दस का समावेश हुआ है। 315 + 500 + 105 + 100 +176 + 175 + 215 +837 + 155 + 80 = 2718 श्लोक इस प्रकीर्णकों का प्रमाण है। 2. चूलिका' 1. नंदी इसे कितनेक विद्वान नंदी भी कहते हैं। कोई इसकी 'नान्दी' का प्राकृत समीकरण होने की कल्पना करते हैं। द्रव्यानुयोग के निरूपण स्वरूप इस आगम में 59 सूत्र और 90 पद्य है। प्रारम्भ में 47 जितने पद्य स्थविरावली रूप हैं। प्रारम्भ 1. पिस्तालीस आगमो पृ. 57-61