________________ (214) (6) महानिसीह (महानिशीथ) इसका प्रमाण 4548 श्लोक है। इसमें प्रारम्भ में तीन विभागों का सूचन किया गया है। किन्तु इसके आठ विभाग दृष्टिगत हैं। जिसमें पहले 6 का अध्ययन अन्तिम दो का चूला रूप में उल्लेख है। पंचमंगलमहासुयक्खंध (नमस्कार मंत्र) की स्थापना इसमें की गई है। कहा जाता है कि इस की रचना गणधर ने की है। इसका उद्धार हरिभद्रसूरि ने किया है। ___ इस प्रकार इन छः छेदसूत्रों का कुल परिमाण 821 + 2106 +473 +373 + 200 + 4548 = 8521 श्लोक है। 10 प्रकीर्णक (1) देविंदथय (देवेन्द्रस्तव) 307 गाथा में रचित इस प्रकीर्णक में इन्द्रों के विषय में विशेष चर्चा है। इसके कर्ता कोई ऋषिपाल हो ऐसा 305-306 वीं गाथा से विदित होता है। ये 'ब्रह्मद्वीप' शाखा के हैं, ऐसा कईयो का कहना है। (2) तंदुलवेयालिय (तंदुलवैचारिक) इस नाम की योजना-100 वर्ष की आयुष्य वाला पुरुष रोज तंदुल (चावल) खावे और उसकी जो संख्या हो, इस विचारणा के उपलक्षण से उसकी नाम योजना हुई हो, ऐसा कहा जाता है। यह अज्ञातकर्तृक है। (3) गणिविज्जा (गणिविद्या) 82 पद्यों में रचित इस आगम में ज्योतिष का विचार किया गया है। यह भी अज्ञातकर्तृक है। (4) आउरपच्चक्खाण (आतुरप्रत्याख्यान) इसके कर्ता वीरभद्र हैं। यह मुख्यतया पद्य में रचित है। 100 श्लोक जितने प्रमाण में इसकी रचना है। (5) महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान) 142 श्लोक में इसकी रचना की गई है। यह अज्ञातकर्तृक है। (6) गच्छाचार (गच्छाचार) गच्छ समुदाय। गच्छ का वर्णन इसमें किया गयाहै। इस आगम का उद्धार 1. पिस्तालीस आगमा पृ. 49-569