________________ (197) आठ प्रभावनाएँ प्रवचनसारोद्धार' में उपाध्याय के प्रबल प्रभाव को व्यक्त करने वाली आठ प्रभावनाएँ निर्देशित हैं__ 1. प्रावचनी-जैन तथा जैनेतर आगमों का मर्मज्ञ विद्वान होना। अन्य मतावलम्बी सत्र और शास्त्रों के ज्ञाता, सर्व शास्त्रों में प्रवीण होने पर ही सर्व को योग्य ज्ञान देकर धर्म की प्रभावना कर सकते हैं। 2. धर्मकथी-धर्मकथा करने में कुशल होना। धर्मकथा चार प्रकार की है1. आक्षेपणी 2. विक्षेपणी 3. संवेदनी 4. निर्वेदनी। आक्षेपणी-अर्थात् श्रोता जिसे हृदयस्थ व आत्मसात कर ले। विक्षेपणी-सन्मार्ग छोड़कर उन्मार्गगामी को पुनः सन्मार्ग पर स्थिर करे। सन्मार्ग पर स्थापित कर दृढ़ करे वह विक्षेपणी कथा। संवेगनी-जिस को सुनकर हृदय में वैराग्य प्रस्फुटित हो, वह संवेगनी कथा। . निर्वेदनी-जिसे सुनने पर संसार से उदासीनता आ जावे, एवं संयम लेने को आतुर हो जावे वह निर्वेदनी कथा। इस प्रकार धर्मकथा में प्रवीण होकर प्रभावना करे। 3. वादी-स्वपक्ष के मण्डन परपक्ष के खण्डन में सिद्धहस्त हो। शास्त्रों का प्रमाण दर्शाकर वादी-प्रतिवादी के खरे-खोटे पक्ष का स्वरूप बताकर स्वमत की स्थापना करके प्रभावना करे। ___4. नैमित्तिक-भूत, भविष्य, वर्तमान में होने वाले हानि-लाभ के ज्ञाता। शास्त्रों में भूगोल, खगोल, निमित्त, ज्योतिष आदि जो जो विद्या हैं, उसमें पारंगत होना। आपत्ति के समय सावधान होकर प्रभावना करें। ___5. तपस्वी-विविध प्रकार के तप में निपुण यथाशक्ति दुष्कर, कठिन तपश्चर्या करके प्रभावना करे। 6.विद्यावान्-रोहिणी, प्रज्ञप्ति, अदृष्ट, परशरीर प्रवेशिनी, गगनगामिनी आदि विद्याओं, मंत्रशक्ति, गुटिका, रससिद्धि इत्यादि अनेक विद्याओं में प्रवीण हो। . 7. सिद्ध-अंजन, पादलेप आदि विविध प्रकार की सिद्धियों के ज्ञाता हो। 1. प्रवचन सारो. द्वार 148 गा. 834