________________ (203) वर्तमान में पूर्व द्वादशांगी से पृथक् नहीं मान्य किये जाते। दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग का ही एक विभाग पूर्व हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भाष्य में स्पष्ट रूप से कथन किया है कि "दृष्टिवाद में समस्त शब्द ज्ञान का अवतार हो जाता है तथापि ग्यारह अंगों की रचना अल्प मेघावी पुरुष और स्त्रियों के लिए की गई। पूर्वो का अध्ययन प्रतिभा सम्पन्न करते थे तथा अंगों का अध्ययन तेजस्विता कम हो वे करते थे।" __ पूर्वो के अन्तर्गत विपुल साहित्य है। उसके अन्तर्वर्ती चौदह पूर्व हैंचौदहपूर्व 1. उत्पाद पूर्व-समग्र द्रव्यों और पर्यायों के उत्पाद या उत्पत्ति को अधिकृत कर इसमें विश्लेषण किया गया है। इसका परिमाण एक करोड़ है। 2. अग्रायणीय पूर्व-अग्र तथा अयन शब्दों के मेल से अग्रायणीय शब्द निष्पन्न हुआ है। अग्र का अर्थ परिमाण और अयन का अर्थ गमन-परिच्छेद या विशदीकरण है। अर्थात् इस पूर्व में सब द्रव्यों, सब पर्यायों और सब जीवों के परिमाण का वर्णन है। पद-परिमाण छियानवें लाख है। 3. वीर्यप्रवाद पूर्व-सकर्म और अकर्म जीवों के वीर्य (पराक्रम, सामर्थ्य, अन्तरंग शक्ति) का विवेचन है। पद-परिमाण सत्तर लाख है। 4. अस्ति-नास्तिप्रवाद पूर्व-लोक में धर्मास्तिकाय आदि जो हैं और खरविषाणआदि जो नहीं है, उनका इसमें विवेचन है अथवा सभी वस्तुएँ स्वरूप की अपेक्षा से हैं तथा पर रूप की अपेक्षा से नहीं है, यह विवेचन है। पद परिमाण साठ लाख है। 5. ज्ञानप्रवाद पूर्व-मति आदि पाँच प्रकार के ज्ञान का विस्तार-पूर्वक विश्लेषण है। पद परिमाण एक कम एक करोड़ है। 6. सत्यप्रवाद पूर्व-सत्य का अर्थ संयम का वचन है। उसका विस्तारपूर्वक सूक्ष्मता से विवेचन है। पद परिमाण छः अधिक एक करोड़ है। 7. आत्मप्रवाद-आत्मा या जीव का नय भेद से अनेक प्रकार से वर्णन है। पद परिमाण छब्बीस करोड़ है। 1. विशेषा भा. गा. 554 2. भगवती 11.11.432, 2.1.9, 17.2.617, अंतगड 3 वर्ग अध्य. 1,9,6 वर्ग अध्य. 15, वर्ग 8, अध्य 1, ज्ञाता अध्य 12, 2.1 3. जैनागम दिग्दर्शन पृ. 22