________________ (201) सूत्र-सिद्धान्त (आगम) जिस प्रकार हिन्दु परम्परा में शास्त्रों को 'वेद', बौद्ध शास्त्रों को 'पिटक' कहा जाता है। उसी प्रकार जैन शास्त्रों को 'श्रुत', 'सूत्र', या आगम कहा जाता है। वर्तमान में आगम शब्द का प्रयोग विशेष प्रचलित है, किन्तु प्राचीनकाल में श्रुत का प्रयोग अधिक होता था। श्रुतकेवली, श्रुतस्थविर, शब्दों का प्रयोग आगमों में अनेक स्थलों पर हुआ है, किन्तु किसी भी स्थान पर आगम केवली या आगम स्थविर दृष्टिगत नहीं होता। सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन आगम, आप्तवचन, ऐतिह्य, आम्नाय, जिनवचन और श्रुत ये सभी आगम के पर्यायवाची नाम हैं। आगम शब्द की परिभाषा अनेकशः उपलब्ध होती है। जिससे वस्तुत्त्व (पदार्थ) का परिपूर्ण ज्ञान हो, वह आगम हैं। अथवा 'जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादितज्ञान हो वह आगम है। अन्यत्र कहा है 'जो तत्त्व आचार परम्परा से वासित होकर जाता है वह आगम है। साथ ही 'आप्त वचन से उत्पन्न अर्थ (पदार्थ) ज्ञान आगम कहा जाता है। उपचार से आप्त वचन भी आगम कहा जाता है। 'आप्त का कथन आगम है। जिसे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है। इस आप्तवचन या आप्त अनुस्यूत वाणी आगम संज्ञा से अभिहित की गई है। यह आगम समस्त श्रुत-शास्त्रों का परिचायक है। आप्त कौन? जिन आप्त पुरुष के वचन आगम या श्रुत कहलाते हैं, वे आप्त कौन है? तात्पर्य यह है कि आप्त किसे कहा जाय? 1. नंदी सूत्र 149 2. स्थानांग 150 3. अनुयोगद्वार 4, विशेषाव. भा. 8.197 4. तत्त्वार्थभाष्य 1-20 5. रत्नाकरावतारिका वृत्ति * 6. आव. मलयगिरिवृत्ति 89-90, नंदीसूत्र वृत्ति 40-41 7. सिद्धसेनगणि कृत भाष्यानुसारिणी टीका पृ. 87 8. स्याद्वाद मंजरी 38 गा. टीका. 9. आप्तोपदेशः शब्दः- न्यायसूत्र 1.1.7. 10. विशेषा. भा. 559