________________ (209) श्रुतस्कंध के 19 अध्ययन है तथा दूसरे में 10 वर्ग हैं, जिसमें 216 अध्ययन हैं / इसे ज्ञातृधर्मकथा भी कहते हैं। ___7.उवासगदसा (उपासकदशा)-धर्मकथा अनुयोग से विभूषित इस आगम में दस अध्ययन हैं। इसमें 59 सूत्र हैं। महावीर स्वामी के प्रमुख दस श्रावकों का इसमें विवेचन है। 8. अंतगडदसा (अंतकृद्दशा)-यह आगम आठ वर्ग में विभक्त है। जिसमें 92 उद्देशक हैं। यहाँ उद्देशक का अर्थ अध्ययन है। इसमें अन्तसमय में केवलज्ञान प्राप्त कर अंतर्मुहूर्त में मोक्ष गए हैं, उनके उदात्त चरित्रों का वर्णन है। 9. अणुत्तरोववाईयदसा (अनुत्तरौपपातिकदशा)-यह आगम तीन वर्ग में विभक्त है। इसमें अनुक्रम से दस, तेरह और दस इस प्रकार 33 अध्ययन हैं। 10. पण्हावागरण (प्रश्नव्याकरण)-इस आगम में दो विभाग है। जिसे द्वार कहा गया है। पहले का नाम 'आस्रवद्वार' और दूसरे का नाम 'संवरद्वार' है। इसमें प्रत्येक के पाँच-पाँच अध्ययन है। ___11. विवागसुय (विपाकश्रुत)-धर्मकथा अनुयोग से निरूपति इस आगम के दो श्रुतस्कंध है। पहले का नाम 'दुःख-विपाक' और दूसरे का सुख-विपाक है। प्रत्येक विभाग में दस-दश अध्ययन है। इस प्रकार ये ग्यारह अंग है। बारह उपांग 1. ओववाइय (औपपातिक) इस आगम को उववाइय और ओवाइय भी कहा जाता है। आचारगत 'उववाईय' को लक्ष्य करके इसकी रचना हुई है, ऐसा माना जाता है। यह आचारांग का उपांग है। गद्य एवं पद्य में इसकी रचना है। सू 1-37 जितने भाग को पूर्वार्द्ध और शेष भाग को उत्तरार्द्ध गिना जाता है। इस आगम का हेत उपपात एवं मोक्षगमन है। 2. रायपसेणिय (राजप्रश्नीय) यह आगम सूयगडांग सूत्र को लक्षित करके लिखा जाने से यह सूयगड का उपांग माना जाता है। रायपसेणईय, रायप्पसेणईय, रायप्पसेणिय, रायप्पसेणईज्ज ये 1. पिस्तालीस आगमो पृ. 21-32