________________ (207) 1. कालिक-जो श्रुत रात तथा दिवस के प्रथम प्रहर तथा अंतिम प्रहर में ही पढ़ा जाता है वह कालिक श्रुत है। 2. उत्कालिक-जो काल वेला को वर्जित कर सब समय में पढ़ा जा सकता है, वह उत्कालिक श्रुत है: कालवेला = सन्धि समय। - इन सभी आगमों को अनुयोगों के अनुसार चार भागों में भी विभक्त किया गया है - (1) चरण-करणानुयोग-कालिक श्रुत, महाकल्प, छेद सूत्र आदि (2) धर्मकथानुयोग-ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन आदि (3) गणितानुयोग-सूर्यप्रज्ञप्ति आदि (4) द्रव्यानुयोग-दृष्टिवाद आदि अंग आगम श्रमण भगवान महावीर के पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी ने जो द्वादशांगी रची, उसके ग्यारह अंग ही शेष रहे हैं, उनको अनुलक्ष करके कालान्तर में स्थविरों एवं गीतार्थ आचार्यों द्वारा अन्य आगमों की रचना की गई। इस प्रकार आज 11 अंग, 12 उपांग, 4 मूलसूत्र, 6 छेदसूत्र, 10 प्रकीर्णक, 2 चूलिका रूप पैंतालीस आगम स्वीकार्य है। ___ 11 उपांग-1. ओववाईय 2. रायपसेणिय 3. जीवाभिगम 4. पण्णवणा 5. सूरपण्णत्ति 6. चन्दपण्णत्ति 7. जंबुद्दीवपण्णत्ति 8. निरयावलिया 9. कप्पवडिंसिया 10. पुप्फिया 11. पुप्फचूलिया 12. वण्हिदसा। 4. मूल-1. आवस्सय 2. उत्तरज्झयण 3. दसवेयालिय 4. ओहनिज्जुत्ति अथवा पिंडनिज्जुत्ति अथवा पक्खियसुत्त। 6. छेद-निसीह, कप्प, ववहार महानिसीह, दसा, जीतकल्प 10 प्रकीर्णक- 1. देविंदथय 2. तंदुलवेयालिय 3. गणिविजा 4.आउरपच्चक्खाण 5. महापच्चक्खाण 6 गच्छाचार 7. भत्तपरिण्णा 8. मरणसमाहि 9. संथारग 10. चउसरण। 2. चूलिका-1. नंदी 2. अणुओगदार 1. आव. नियुक्ति 363-377, विशेषा. भा. 2284-2295, दशवैका. नियुक्ति, 3. टीका 2. पिस्तालीस आगमो-कापडिया हीरालाल पृ. 2