________________ (208) एकादश अंग 1.आयार(आचार)-आयार आगम के अनेक नाम हैं-वेद, आकर, आश्वास, आदर्श, आचीर्ण, आमोक्ष आदि। यह आगम दो विभागों में विभक्त है। जिसे 'श्रुतस्कंध' कहा जाता है। उसके पेटाविभाग को अध्ययन कहा जाता है। अध्ययन में उद्देशक और उद्देशक में सूत्र हैं। प्रथम श्रुतस्कंध का नाम 'ब्रह्मचर्य' और दूसरे का नाम 'आचाराग्र' है। प्रथम श्रुतस्कंध के नौ अध्ययन है। उसका सातवाँ अध्ययन का विच्छेद हो गया। दूसरे श्रुतस्कंध में पहले पाँच चूलाएँ थीं किन्तु पाँचवीचूला ने बाद में पृथक् स्थान ले लिया। अतः अब चार चूला के क्रमशः 7, 7, 1, 1 इस प्रकार सोलह अध्ययन हैं। 2. सूयगड (सूत्रकृत)-आचारांग की भांति इसके भी अन्य नाम हैं-सूतगड और सूत्तकड आदि। इस अंग के भी दो श्रुततस्कंध हैं। पहले के सोलह और दूसरे के सात अध्ययन हैं। प्रथम श्रुतस्कंध को 'गाथाषोडशक' कहते हैं। 3. ठाण (स्थान)-यह आगम दस विभाग में विभक्त है। इस दसों को स्थान एवं अध्ययन भी कहते हैं। कितने स्थानों में उद्देशक भी हैं। ___4. समवाय-अधिकांशतः गद्यात्मक इस आगम का नाम प्राकृत और संस्कृत दोनों में ही 'समवाय' है। इसे 'समाय' भी कहते हैं। ठाणं में एक से दस तक संख्यात्मक विवरण है, तो इस आगम में संख्यावाले पदार्थ निरूपण से प्रारम्भ होकर हजार, लाख, करोड़, कोटाकोटि, सागरोपम की संख्यावाले पदार्थों का उल्लेख है। 5. विवाह पण्णत्ति (व्याख्या प्रज्ञप्ति)-इस पंचम अंग के प्राकृत नाम के संस्कृत में विविध समीकरण है। जैसे कि विवाहप्रज्ञप्ति, विवाध प्रज्ञप्ति आदि। बृहद्काय होने से एवं महान् होने से इसे भगवती भी कहा जाता है। इस आगम में 41 शतक हैं, जिसमें उद्देशक भी हैं। सौ से अधिक अध्ययन, 1000 उद्देशक, 36000 व्याकरण (प्रश्न) एवं 84000 पद इसमें थे। किन्तु आज वह दृष्टिगत नहीं होता। इस आगम में प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्रतिपाद्य का विश्लेषण किया गया है, जिसमें विविध विषयों को समाविष्ट किया है। 6. नायाधम्मकहा-(ज्ञाताधर्मकथा)-'धर्मकथा' नाम इस आगम में दो श्रुतस्कंध है। पहले का नाम 'नाय' (ज्ञात) और दूसरे का 'धम्मकहा'-धर्मकथा है। पहले 1. पिस्तालीस आगमो-पृ. 5-20