________________ (198) 8. कवि-गद्य, पद्य, कथ्य, गेय इन चार प्रकार के काव्यों के रचयिता। अनेक प्रकार के छंद, कविता, ढाल, जोड़, स्तवन आदि उत्तम काव्यों का निर्माण करके, उसमें अनुभव रस द्वारा भरपूर गूढार्थ संमिश्रण करके, आत्मज्ञान की शक्ति विकसित करके, धर्म की प्रभावना करें। इस प्रकार ये उपाध्याय के प्रबल प्रभाव, तेजस्विता को उदीप्त करने वालीआठ प्रभावनाएँ हैं। इन पच्चीस गुणों के धारक उपाध्याय हैं। अथवा-11 अंग, 12 उपांग, 2 करण सित्तरी व चरण सित्तरी', इस प्रकार 11 + 12 + 2 = 25 गुणों के धारक उपाध्याय हैं। उपाध्याय की अन्य विशेषताएँ गणि-गच्छ-संधारणे स्थंभभूता' उपाध्याय स्तंभरूप हैं, किससे? तो कथन है कि वे गणि अर्थात् आचार्य और गच्छ (समुदाय) को सम्यक् रूप से धारण करने में स्तंभ स्वरूप हैं। आचार्य भी स्तंभरूप हैं, वे समग्र शासन की ईमारत के स्तंभ है। उनके सुदृढ़ स्कंधों पर तीर्थंकर भगवान के शासन का उत्तरदायित्व है। फलस्वरूप शासन अविच्छिन्न रूप से चलता है। इस अर्थ में आचार्य संघ के नेता हैं, उनकी आज्ञा में संघ का संचालन होता है। इसी से गच्छ के लिए भी स्तंभ समान हैं, क्योंकि गच्छ को उपाध्याय के पास से शास्त्राध्ययन मिले तब ही स्वाध्याय, ज्ञान, ध्यान कर सकते हैं। अन्यथा अध्ययन के अभाव में स्वाध्याय कैसे हो? साधु के जीवन में भी यदि स्वाध्याय का जोर न हो तो उनके जीवन में मानसिक विचारों का झंझावात चल पड़ेगा, जिससे रागद्वेष, असमाधि, आर्तध्यान आदि का पोषण होता रहेगा। जो कि जालिम कर्मबंध एवं दुर्गातियों में भटकाने वाला बन जावेगा। उपाध्याय गच्छ को स्वाध्याय एवं ज्ञान देकर भयंकर दुर्दशा एवं दुर्गति-पतन से संरक्षण करते हैं, बचा लेते हैं। इस प्रकार वे गच्छ के लिए एक जबरदस्त स्तंभ समान बनते हैं। गच्छ को स्तंभ के समान भली-भांति साधुता में स्थिर कर देते हैं। 1. जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग 6 पृ. 216 2. नवपदपूजा चौथा उपाध्याय पद