________________ (195) 4. भाव उपाध्याय-द्वादशांग रूप स्वाध्याय जो कि जिनेश्वर भगवान द्वारा कथित है और गणधरों ने परम्परा से उपदेश किया है। उनका स्वाध्याय का शिष्यों को सूत्र से उपदेश देते हैं, वे भाव उपाध्याय हैं। उपाध्याय के गुण ___ उपाध्याय में 25 गुणों का होना स्वीकार किया गया है ये पच्चीस गुण हैं-11 अंग एवं 14 पूर्व के ज्ञाता अर्थात् इन 11 अंग और 14 पूर्व के पठन-पाठन गुण से संयुक्त हों, वे उपाध्याय है। 11 + 14 = 25 गुण। अंग एवं पूर्व का विवेचन आगम के सन्दर्भ में किया जाएगा। इन पच्चीस सूत्र के ज्ञाता रूप गुण के धारक उपाध्याय परमेष्ठी हैं। अन्यत्र अन्य रीति से भी इन पच्चीस गुणों का कथन किया गया है। 12 अंग, 13 करण सित्तरी गुण युक्त 14 चरण सित्तरी गुण युक्त, 15-22 आठ प्रभावना करने वाले तथा 23-25 मन, वचन काया का प्रणिधान करने वाले इस प्रकार 12 +2+3 = 25 इन पच्चीस गुणों के धारक उपाध्याय हैं।' 12 अंग__ पूर्वोक्त 11 अंगों के अतिरिक्त बारहवाँ दृष्टिवाद अंग है, जिसका कि विच्छेद हो जाने से अंगों की संख्या 11 मानी जाने लगी। यहाँ बारहवें अंग को भी सम्मिलित कर दिया है। करणसित्तरी-करण से तात्पर्य है क्रिया। अवसरानुकूल क्रिया करे वह करण है। करण के 70 बोल होने के कारण सित्तरी कहा जाता है। 4 पिंडविशुद्धि-आहार, वस्त्र पात्र और स्थान इन चारों को निर्दोष ग्रहण करें वह पिंडविशुद्धि। (5) पाँच समिति-ईर्या, भाषा, एषणा, आदानभण्डमत्तनिक्षेपणा, उच्चार प्रस्रवणादि प्रतिष्ठापनिका समिति का पालन। 12 भावना-अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोकसंस्थान, बोधिबीज, धर्मभावना 12 प्रतिमा-भिक्षु की कायक्लेश तप युक्त प्रतिमा 1. चारित्र प्रकाश 115