________________ (193) उपाध्याय-व्युत्पत्तिपरक अर्थ उपाध्याय पद की नियुक्तियाँ निम्न प्रकार से की गई है(1) 'उ' ति उवओगकरणे, 'व' त्ति य पाव परिवज्जणे होइ। 'झ'त्ति य झाणस्स कए, 'उ' ति य ओसक्कणा कम्मे।। अर्थात् -उ = उपयोग करना, व = पाप का वर्जन करना, झ = ध्यान करना और उ कर्मों को दूर करना अर्थात् उपरयोग पूर्वक, पापों का नाश करते हुए, ध्यानारूढ़ होकर कर्मों को दूर करे वे उपाध्याय कहलाते हैं। (2) अथवा-'उ' ति उवओगकरणे, 'झ' त्ति य झाणस्स होई निद्देसो। एएण हुंति 'उज्झा' एसो अन्नो वि पज्जाओ // अर्थात् उ = उपयोग करना और 'ज्झा' अर्थात् ध्यान करना। इस प्रकार 'उज्झा' अर्थात् उपयोगपूर्वक ध्यान करना, यह इसकी अन्य पर्याय है। (3) अथवा-उप-समीपमागत्याधीयते 'इङ् अध्ययने इति वचनात् पठ्यते, इण गताविति वचनाद्वा 'अधि' आधिक्येन गम्यते, इक् स्मरणे इति वचनाद्वा स्मर्यते सूत्रतो जिनवचनं येभ्यः ते उपाध्यायः-उपाध्याय पद में तीन शब्द है-उप + अधि + ई। उप = समीप, अधि = आधिक्य, एवं 'इ' धातु के तीन अर्थ होते हैं-1. अध्ययन करना 2. जाना (जानना) एवं स्मरण करना अर्थात् जिनके पास जाकर सूत्र से जिनवचनों का अध्ययन किया जाये, अधिकता से ज्ञान प्राप्त किया जाये तथा स्मरण किया जाय-वे उपाध्याय हैं। (4) अथवा उपाधानमपाधिः-संनिधिः तेन उपाधिना उपाधौ वा आयो लाभः श्रुतस्य येषाम्। उपाधीनां वा विशेषणानां प्रक्रमाच्छोमनानामायो लाभ येभ्यः। अथवा उपाधिरेव संनिधिरेव आयम्-इष्ट फलं दैवजनितत्वेन आयानामिष्टफलानां समूहस्तदेकहेतुत्वाद् येषाम्। उपाधि यानि 'संनिधि' जिनकी संनिधि से अर्थात् जिनके सानिध्य में रहने से श्रुतज्ञान का 'आय' अर्थात् लाभ होता तो वह उपाध्याय है। (5) अथवाऽधीनां मनः पीडानामायो लाभ आध्यायः, अधियां वा, नत्रः कुत्सार्थत्वात् कुबुद्धीनामायोध्यायः, 'ध्यै चिन्तायाम्' इत्यस्य धातोः प्रयोगान्नबः कुत्सार्थत्वादेव च दुर्व्यानं वा अध्यायः उपहत अध्यायो अध्यायो वा यैस्ते उपाध्यायाः' अर्थात् 'आधि'- मन की पीडा उसका आय-लाभ वह आध्याय। 1. (आव. नि. गा. 1003) 2. (वही गा. 1002) 3. (भगवती सूत्र मंगलाचरण भाग-१) 4. (भगवती सूत्र मंगलाचरण भाग-१) 5. (भगवती सूत्र, मंगलाचरण भाग-१, आव. नि. गा. 1001,2, 3)